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भामाशाह
दूत - तुम्हारे तात भी इस कला में दक्ष प्रतीत होते हैं, क्या मैं उनका शुभ नाम जान सकता हूं ?
मामा - अवश्य, पर उनका परिचय देने से पूर्व मैं आपका परिचय जानने को उत्सुक हूं ।
दूत-निर्भीक बालक ! इस वय में तुम्हारा यह वाक्चातुर्य साधारण नहीं। पर मेरा परिचय जान कर क्या करोगे ? मैं विदेशी यात्री हूं और एक आवश्यक कार्यवश ही यहां आया हूं ।
भामा-क्या आप वह कार्य मुझे अवगत करा सकेंगे ? सम्भव है मुझसे आपकी कुछ सहायता हो सके ।
दूत - करना चाहो तो अवश्य हो सकेगी।
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भामा- - आप आज्ञा दीजिये, मैं तत्पर हूँ ।
दूत - तत्पर हो तो मुझे शाह भारमल्ल के भवन का मार्ग दर्शन करा दो।
भामा-आपके इस कथन से ज्ञात होता है कि आपका कार्य उन्हीं से है ।
दूत — कुमार ! तुम्हारा अनुमान ठीक है, मुझे उन्हीं से मिलने की अभिलाषा है ।
मामा - आपकी अभिलाषा शीघ्र ही पूर्ण होगी, इस समय आप उन्हीं के गृह के द्वार पर खड़े हैं । ( नेपथ्य की ओर संकेत कर ) वह देखिये, पितृवर भी जिनालय से पूजन कर इधर ही आ रहे हैं ।
( भारमल का आगमन )
मामा - तात ! ( दूत की ओर संकेत कर ) ये आपसे मिलने के लिये बाहर से आये हैं ।
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