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भामाशाह
( दूत द्वारा भारमल्ल का अभिवादन )
भारमल्ल -( स्मितिपूर्वक अभिवादन का प्रत्युत्तर देते हुए) कहिये, आपका शुभागमन कहां से हुआ ?
दूत-श्रीमान् ! मैं अभी चित्तौड़ से चला आ रहा हूं, वहां के महाराणा उदय सिंह ने मुझे आपकी सेवा में भेजा है। यदि कोई बाधा न हो तो मैं अपने आने का उद्देश्य आपसे निवेदन करूं।
भारमल्ल-निस्संकोच कहिये, यहां किसी अनिष्ट की सम्भावना नहीं।
दूत-श्रीमान् ! आपको विदित ही है कि चित्तौड़ राज्य का गौरव सदा शत्रुओं को खटकता रहता है और वे आये दिन उस पर आक्रमण करते रहते हैं । प्रायः सभी दुर्ग अपनी सुरक्षा के लिये वीरों को मौन निमन्त्रण दे रहे हैं । रणथम्भौर दुर्ग की सुरक्षा भी दुःसाध्य हो रही है। इसी कारण चित्तौड़-नरेश ने रणथम्भौर के दुर्ग-रक्षक के पद पर प्रतिष्ठित करने के लिये आपको आमन्त्रित किया है।
भारमल्ल-बन्धु ! महाराणा की इस गुणग्राहिता के लिये मैं आभारी हूं। पर यह नगर और यहां के प्रेमी परिचितों को छोड़ अन्यत्र जाने की इच्छा नहीं होती।
दूत-यह बाधा स्वाभाविक है, चिर सहवास से मोह प्रबल हो ही जाता है। पर कर्मशील मोह की अपेक्षा कर्त्तव्य को ही अधिक महत्व देते हैं।
भारमल्ल-वस्तुतः मोह की अपेक्षा कर्त्तव्य विशेष आदरणीय है, इसके अतिरिक्त चित्तौड़ के महाराणा के आदेश की अवहेलना भी