Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 178
________________ भामाशाह तथा 'मन्नासिंह' से सब लाल । सजा लो सखि ! पूजन का थाल !! हुवा फिर उन्नत मां का भाल | ( गीत की समाप्ति पर भवन में पूर्ण शान्ति और महाराणा का अभिभाषण ) C प्रतापसिंह - ( खड़े होकर ) स्वतन्त्र मावाड़ के भाग्यशाली नागरिकों ! जिन वीर योद्धाओं की अमूल्य सहायता से यह विजयोत्सव मनाने का सुयोग मिला है उन्हें उनके त्याग का उचित श्रेय देना ही आज के आयोजन का अभिप्राय है । इसमें मेवाड़ - उद्धार का सर्वाधिक श्र ेय भामाशाह को है । इनकी इस महानता का सम्मान करना संसार में प्रतिष्ठा बढ़ाना है । अतएव शासन की ओर से इन्हें कई ग्राम वंश-परम्परा के लिये प्रदान किये जाते हैं। साथ ही इन्हें प्रथम श्रेणी के सामन्तों में स्थान देकर भाटकपट ताजीम, पैर में सोने का लंगर और पाग में माझा अलंकृत करने का अधिकार भी प्रदत्त होता है । इसके अतिरिक्त मेरी यह भी घोषणा है कि मेरे वंशज सदा इनके वंशजों को शासन के मंत्री पद पर प्रतिष्ठित करें तथा मेरा एक प्रस्ताव यह भी है कि मेवाड़ के इतिहास में इनको मेवाड़ के भाग्य विधायक और इनके वंशजों को मेवाड़ के उद्धारकर्त्ता के रूप में स्मरण किया जाये । आशा है आप सर्व सम्मति से इस प्रस्ताव को मान्यता देंगे । सब–( भवन के चारों ओर से ) हम सब सहमत हैं, भामाशाह के प्रति किया गया प्रत्येक सम्मान न्याय है । प्रतापसिंह - ( पुनः ) इस दीर्घकालीन राष्ट्र-यज्ञ में झाली कुल तिलक राजा मानसिंह आदि जिन जिन वीर योद्धाओं ने प्राणार्पण १४२

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