Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 194
________________ अंक दृश्य १ १ १ २ ३ ३ ५ ५ ५ नाटक की कुछ सूक्तियाँ १ उदारता कोई शोचनीय अवगुण नहीं, प्रशंसनीय गुण है । ५ चिर- सहवास से मोह प्रबल हो ही जाता है । कर्मशील मोहकी अपेक्षा कर्त्तव्यको ही अधिक महत्व देते हैं । ८ हमें कायरता से घृणा करनी चाहिये, कायर से नहीं । ४ कुटिल जन प्रत्येक कार्य किसी न किसी स्वार्थवश ही करते हैं । ४ पावन को भी पतित बनाना पतितों का व्यसन होता है । ९ चिन्ता और निराशा उन्नति के वृक्ष को काटने वाली སྙ कुल्हाड़ियां हैं । १ प्रत्येक आत्मा में अनन्त शक्ति है । १ वीतरागी के मनोभाव गोपनीय नहीं होते । ४ पौरुष ही दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने को समर्थ है। ४ भाग्य और पौरुष सफलता रूप रथ के दो चक्र हैं, भाग्यचक्र का संचालन नियति करती है और पौरुष चक्र का संचालन पुरुष | ५ किसी भी परराष्ट्र के मंत्री से सतर्क रहना राजनीति है । ५ जयेच्छु नृप की नीति और शक्ति ये दो भुजाएँ है । १५८

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