Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 195
________________ भामाशाह अंक दृश्य ५ ५ क्षमा व्रतधारियों का गुण है, तेजस्वी राजाओं का नहीं। ५ ८ प्रत्येक दुःखी के दुःख दूर करना मनुष्य का कर्तव्य है। ६ २ रजत खण्डों पर अपना स्वाभिमान बेंचने वाले सिद्धान्त का मूल्य आँकने में असमर्थ होते हैं। ६ २ मृत्यु के साथ क्रीड़ा करनेवाले वीरों का मरण कभी नहीं होता। ६ २ समुज्ज्वल सिद्धांतोंके लिये इन्द्रका कोप भी घातक नहीं होता। ६ ५ प्रयत्न करने से असम्भव सम्भव हो जाता है, असाध्य साध्य हो जाता है और अप्राप्य भी प्राप्य हो जाता है । ७ २ आत्म-संयम ही सफलता का स्वर्ण सोपान है । ७ २ अन्तरंग मित्र से कुछ भी गोपनीय नहीं होता । ७ २ धैर्य से असम्भव भी सम्भव हो जाता है। ७ ३ चिन्ता संसारी जीवों की जीवन-संगिनी हैं । ७ ४ नारी हृदय से केवल एक को ही चाह सकती है। ७ ४ आदर्शवादी नारी जिसे अपना हदय दे देती है, उसके साथ विश्वासघात नहीं करती। ७ ५ उत्सर्ग स्वयं अपना स्मारक है। १ ० ० १ ७ १५६

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