Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 193
________________ भामाशाह ताराचन्द्र- -अवश्य । २१ प्राणियों की काया भस्म करने के लिये अभी यह पर्याप्त नहीं । नैनूराम - ( कुछ और काष्ठ रख कर ) लीजिये, पर्याप्त हो गया । अब अग्नि प्रज्वलित की जाये । ताराचन्द्र - करो ! ( नैनूराम द्वारा चिता में अग्नि प्रज्वलन ) ताराचन्द्र - अग्नि देवते । युवराज की अनीति से पीड़ित हम सब तुम्हारी शरण में पहुंच रहे हैं; हमें आश्रय देने के लिये अपना अंचल फैलाओ । ( अग्नि की लपटों में कीतू के रक्तरिक्त वस्त्र का प्रक्षेपण, वस्त्र अनि में पड़ने के साथ ही सभी प्रज्वलित चिता में कूदने को उद्यत ) पटाक्षेप १५७

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