Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 192
________________ भामाशाह नैनूराम-पर हृदय-भेदी इस आघात की वेदना हम विश्व को अवश्य दिखा जायेंगे। ताराचन्द्र-इसी के लिये हम सब प्राणों की आहुति देने जा रहे, हैं। हमारी यह आहुति अपने अपमान का महानतम प्रतिशोध होगी। केतकी-क्या आप भी हम सबके साथ अपने आपको चिता की भेंट कर देंगे? ताराचन्द्र-अवश्य ! इन २० प्राणियों के मरण का हेतु बन कर मैं कैसे जीवित रह सकता हूं ? नैनूराम-आपका कथन अनुचित नहीं; पर आपका जीवित रहना अत्यन्त आवश्यक है। ताराचन्द्र-क्यों ? नैनूराम - इसलिये, कि यदि हम सब चितामें भस्म हो गये तो हमारी इस आहुतिका स्मारक कौन खड़ा करेगा ? और स्मारक के अभाव में हमारे उत्सर्ग की कहानी काल के गर्त में विलीन हो जायेगी। ____ ताराचन्द्र-तुम्हारी सम्मति अनुचित नहीं, पर उत्सर्ग स्वयं अपना स्मारक है । इसकी स्मृति हमें नहीं, जनता को रखना है । यदि वह इस आहुति की स्मृति को सुरक्षित रखना चाहेगी तो, एक ऐसा स्मारक बनायेगी जो हम सब के प्राण विसर्जन की मौन कहानी सुनाता रहेगा। नैनूराम-( चिता की ओर देख कर ) क्या अभी और काष्ठ संचित किया जाये ?

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