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अंक दृश्य
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नाटक की कुछ सूक्तियाँ
१ उदारता कोई शोचनीय अवगुण नहीं, प्रशंसनीय गुण है । ५ चिर- सहवास से मोह प्रबल हो ही जाता है । कर्मशील मोहकी अपेक्षा कर्त्तव्यको ही अधिक महत्व देते हैं । ८ हमें कायरता से घृणा करनी चाहिये, कायर से नहीं । ४ कुटिल जन प्रत्येक कार्य किसी न किसी स्वार्थवश ही करते हैं । ४ पावन को भी पतित बनाना पतितों का व्यसन होता है । ९ चिन्ता और निराशा उन्नति के वृक्ष को काटने वाली
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कुल्हाड़ियां हैं ।
१ प्रत्येक आत्मा में अनन्त शक्ति है ।
१ वीतरागी के मनोभाव गोपनीय नहीं होते ।
४ पौरुष ही दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने को समर्थ है।
४ भाग्य और पौरुष सफलता रूप रथ के दो चक्र हैं, भाग्यचक्र का संचालन नियति करती है और पौरुष चक्र का संचालन पुरुष |
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किसी भी
परराष्ट्र के मंत्री से सतर्क रहना राजनीति है ।
५ जयेच्छु नृप की नीति और शक्ति ये दो भुजाएँ है ।
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