Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 187
________________ दृश्य ३ भामाशाह स्थान - भामाशाह का भवन । ( चिन्तित मुद्रा में भामाशाह, क्षणोपरांत मनोरमा का प्रवेश ) मनोरमा-- नाथ! आज आप चिन्तित से दिख रहे हैं ? भामाशाह - प्रिये ! चिन्ता संसारी जीवों की जीवन संगिनी है । यह जन्मसे मरण तक पतिव्रता पत्नी-सी साथ रहती है । केवल मुक्त जीवोंसे सम्बन्ध स्थापित करने में असफल होती है ........! मनोरमा – ( मध्य में ही ) मैं आपकी यह सब दार्शनिक चर्चा नहीं सुनना चाहती। मुझे आपकी चिन्ता का कारण मात्र सुनना है । भामाशाह - सुनो, तुम्हें ज्ञात है कि ताराचन्द्र की भोगवृत्ति है, उसने कीतू नामकी एक सुन्दरी अपने यहां रख छोड़ी है । युवराज अमरसिंह के याचना करने पर भी उसे देना अस्वीकार कर दिया है। इससे युवराज की कोपाग्नि बढ़ गयी है और उन्होंने कीत को पकड़ लाने के लिये सेवक को सादड़ी भेजे हैं । मनोरमा - वास्तव में यह चिन्ता का विषय है । युवराज की इस नीति का जाने क्या परिणाम निकले ? कहीं देवर जी कोई नयी आपत्ति शिर पर न बुला लें । भामाशाह — नहीं, आपत्ति विशेष नहीं आयेगी । मैंने शांत रहने के लिये ताराचन्द्र को पत्र लिख दिया है। वह कोई उपद्रव खड़ा न करेगा । मनोरमा - सम्भव है देवर जी शांति अपनाये रहें, पर युवराज की कोपानि किसी न किसी के नाश का कारण बनेगी ही । १५१

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