Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ भामाशाह दृश्य ४ स्थान-उदयपुर का एक उद्यान ( अमरसिंह के पीछे कीत और उसके पीछे ताराचन्द्र के सेवक नैनूराम का प्रवेश ) अमरसिंह-नैनूराम ! तुम यहीं खड़े रहो। मैं उस वृक्ष के नीचे कीतू से एकान्त में कूछ वार्तालाप करूंगा। ( नैनूराम का स्थगन; अमरसिंह और कीतूका आगे गमन ) अमरसिंह-(एक वृक्ष के नीचे रुक कर ) हे अनिन्द्य सुन्दरी ! तुम्हें ज्ञात है कि मेरा मन-मधुप तुम्हारे छवि-मकरन्द का पान करने का निश्चय कर चुका है ? कीतू -ज्ञात है युवराज ! पर प्रत्येक निश्चय सफल हो, ऐसा कोई नियम नहीं है। अमरसिंह-नियम न हो, पर अमरसिंह का निश्चय असफलता का वरण नहीं करता। तुम्हें अपने सौन्दर्य-भोग का अधिकार मुझे देना होगा। ___ कीतू-यह सर्वथा असम्भव है, नारी हृदय से केवल एक को ही चाह सकती है। मेरे मन-मन्दिर में अब अन्य आराध्य की प्रतिष्ठा करने को स्थान नहीं। अमरसिंह-कीतू ! इतनी कठोरता अपनाने के पूर्व यह निश्चित समझो कि तुम्हारी इस उपेक्षा का परिणाम भीषण हो सकता है। .

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196