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भामाशाह
अमरसिंह- मध्य में ही है और चतुर्थ ?
भामाशाह-चतुथ, राजकीय उद्यान के मालाकार को आदेश दे सुरभित सुमनों के हार बनवाना। __ अमरसिंह-ये समस्त कार्य आप मुझ पर छोड़िये, कल मानसिंह के आनेके पूर्व ये कार्य आपको सम्पन्न दिखेंगे।
भामाशाह-साधुवाद ! आपकी इस कृपा से मेरा चिन्ता-भार न्यून हुआ।
अमरसिंह-अब प्रायः सभी प्रबन्ध हो चुका है, अतः क्या अब चलूं ?
भामाशाह-कुछ क्षण और ठहरिये, अभी भोजन-व्यवस्था के विषय में भी विचार करना है।
अमरसिंह-इसका मुझे स्मरण ही नहीं रहा, मानसिंह का भोजन शाकाहार रहेगा या शाकाहार-मांसाहार दोनों ?
भामाशाह-केवल शाकाहार, अहिंसा के अनुयायी मंत्री के तत्वावधान में मांसाहार की व्यवस्था असम्भव है।
अमरसिह-कोई हानि नहीं, शाकाहार की व्यवस्था सुसाध्य भी होती है।
भामाशाह-पर यह प्रश्न सुसाध्य का नहीं, सिद्धान्त का है। अमरसिंह-( मध्य में ही ) और सिद्धान्त आपके प्राण हैं। भामाशाह-ठीक लक्ष्य किया, अब प्रकृत विषय पर आइये । अमरसिंह-अरे ! यह प्रसंग कहां से कहां पहुंच गया ? भामाशाह-मैं उसे यथास्थान पहुंचाये देता हूं, प्रीतिभोज के
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