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भामाशाह भामाशाह-कहिये, किस धनी नरेश से हमारे आर्थिक अभाव.की पूर्ति सम्भव है ? राजपूत नेरेशों से सहयोग पाने की आशा ही नहीं, क्यों कि वे अकबर के पक्षपाती बन आपको भी शत्रुवत् समझने लगे
प्रतापसिंह-आपका कथन सत्य है, राजपूत-नरेशों से मुझे भी कोई आशा नहीं । हां, मालवा-नरेश से अवश्य कुछ अभीष्ट सिद्ध होने का अनुमान है। ___ भामाशाह-आपने अत्यन्त उपयुक्त नरेशको ही सोचा । मालवानरेश से अवश्य धन प्राप्त हो सकता है पर वे भी सरलता से हमारे हस्तों में मुद्राओं की थैलियां न दे देंगे। __ प्रतापसिंह-आपका कथन ठीक है, कोई भी प्रसन्नता-पूर्वक अपनी लक्ष्मी दूसरे को नहीं दे देता। बिना कोल्हू में पेले अज्ञानी इक्षु भी मधुर रस नहीं देता, फिर ये तो ज्ञानवान् नरेश हैं । अतः इसके लिये उन्हें धमकी देनी पड़ेगी, युद्ध का भय दिखलाना होगा; तब कहीं उनके कोष से कुछ सम्पत्ति प्राप्त हो सकेगी।
भामाशाह-जो भी करना पड़ेगा, मैं मेवाड़-उद्धार का स्वप्न साकार करने के लिये वह सब करूंगा। केवल आपके आदेश का विलम्ब है, पश्चात् योजना कार्यान्वित होने में विलम्ब न लगेगा।
प्रतापसिंह-यदि आप इसके लिये तत्पर हैं, तो कुम्भलमेर की प्रजा को लेकर रामपुर की ओर जायें। सहायता के लिये अपने सहोदर ताराचन्द्र को भी साथ ले लें । जैसे भी बने, मालवा-नरेश से कुछ न कुछ आर्थिक सहायता लेकर ही मेवाड़ लौटें।