Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 151
________________ भामाशाह दृश्य ८ स्थान-बसी का बहिर्भाग। समय-संध्या । [ अश्वारूढ़ ताराचन्द्र, पीछे से शाइवाज खां के एक सैनिक का प्रहार, ताराचन्द्र द्वारा प्रतिकार का प्रयास, दोनों के शरीर से रक्तस्राव, क्षत होने पर भी ताराचन्द्र का शस्त्र-संचालन, तुमुल संघर्ष, यवन सैनिक का जीवन संकटापन्न, ताराचन्द्र के रणचातुर्य और साहस से भयभीत हो उसका पलायन, आइत और श्रांत ताराचन्द्र का मूच्छित होकर अश्व से भू पर पतन, इसी क्षण बसी के राव सांईदास देवड़ा का वहाँ आगमन, ताराचन्द्र को अचेत देख विविध उपचारों से चेत में लाने का प्रयत्न, जल-सिंचन और शीतल समीरण के स्पर्श से नयनोन्मीलन और कराहते हुए उठने की असफल चेष्टा ] साई दास-वीर युवक ! अभी उठने का प्रयास मत करो, मैं तुम्हें सुरक्षित स्थान में ले चलने का प्रयत्न कर रहा हूं। ___ ताराचन्द्र हे विपत्ति-बान्धव ! आप कौन हैं जो मुझ असहाय के प्रति इतनी सहानुभूति प्रदर्शित कर रहे हैं ? ___ साँईदास-मैं बसी का राव साईदास देवड़ा हूं, तुम्हें इस विपन्नावस्था में देख मुझे दुःख है; अतः तुम्हारी कुछ सेवा करना चाहता हूं। ताराचन्द्र-आपके परिणाम अत्यन्त दयालु प्रतीत होते हैं। जो मुझ अपरिचित से भी इस प्रकार बन्धु भाव जताते हैं। सांईदास-इसमें दयालुता क्या ? प्रत्येक दुखी के दुःख दूर करना मनुष्य का कर्तव्य है । अब आप मेरे दुर्ग में चलने की कृपा करें । ११५

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