Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 164
________________ भामाशाह रणोत्साह बिदा हो चला था; और मेरा प्रणवीर हृदय संधि-पत्र लिखने को उतावला हो उठा था-पर तुमने समय पर एक वीर नारी का कत्तव्य पालन कर मुझे पथभ्रष्ट होने से बचा लिया। अब मैं स्वयं अपने कुछ क्षण पूर्व के विचारों के लिये लज्जित हूं। ( इसी क्षण नेपथ्य से ) अरे ! महाराणा कहां हैं ? उन्हें शीघ्र समाचार दो कि शत्रुओं को इस स्थान का भी ज्ञान हो गया है । ___ प्रतापसिंह - हा ! यह क्या विडम्बना है ? अभी एक विपत्ति से मुक्त नहीं हो पाया और यह अन्य वज्र शिर पर टूट पड़ा। सम्पूर्ण मेवाड़में केवल एक यही स्थान रह गया था,पर यह भी सुरक्षित नहीं । कहां जाऊं ? किसके आश्रय में रहूं ? अस्तुः चलू देखें जीवन-नाटक का आगामी दृश्य कैसा है ? सम्भव है मां मेदिनी अपनी इस अभागी संतान को गोद में कहीं आश्रय दे । ( खड्ग उठा वहाँ से प्रस्थान, बच्चों के साथ महाराणी द्वारा महाराणा का अनुसरण ) पटाक्षेप दृश्य ४ स्थान-मेवाड़ का एक ग्राम समय-शीतकाल की एक संध्या ( ग्राम के बाहर पर्वत पर एक पर्ण कुटी, उसीके सामने मेवाड़-उद्धार की चिन्ता में लीन महाराणा प्रतापसिंह और कुछ सामन्त, इसी समय एक गुप्तचर का आगमन ) . गुप्तचर-( अभिवादन कर ) महाराणा ! यवन इस स्थान को भी जान गये हैं। अतः यवन सेनापति अब्दुल रहीम खाँ खानखाना एक १२८

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