Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 166
________________ भामाशाह का एक मात्र यही उपाय है । ( सामन्तों से ) आप सब महानुभाव जायें और अन्य सामन्तों को भी मेवाड़ त्यागने की सूचना दे दें। मैं भी सपरिवार तत्पर हो रहा हूं। ( सामन्तों का गमन) पटाक्षेप दृश्य ५ स्थान- मेवाड़ का सीमा प्रान्त (चित्तौड़ की ओर श्रद्धापूर्वक देखते हुये अरावली शैल शिखर पर आरूढ़ प्रतापसिंह, समीप ही महाराणी पद्मावती, राज-सन्ताने और सामन्तगण ) प्रतापसिंह-( मातृ भूमिको शीश झुकाकर ) बप्पा रावल और संग्राम सिंह की वीर भूमि ! तेरा यह कुपुत्र तुझे शत्रुओं की बन्दिनी बनानेसे न बचा सका । अब यवन-दल का बन्दी बनना या उनके द्वारा मरण ही शेष है। पर इनसे भी तेरा उद्धार संभव नहीं। अतः विवश हो बिदा लेता हूं। मां ! मेरी अकर्मण्यता को क्षमा कर और अपने वरद हस्त उठा कर आशीष दे कि एक बार पुनः तेरा स्वतन्त्र अंचल मुझे आश्रय दे। (शिखर से नीचे उतर सहचरों से ) विपत्ति के सहचरों ! मैं कितना कायर हूं जो अकर्मण्य बन मातृ-भूमि से बिदा ले रहा हूं ? मेरे साथ आप सब को भी प्रिय मेवाड़ छोड़ना पड़ रहा है। एक सामन्त-महाराणा ! मेवाड़-वासियों के भाग्य-विधाता होकर आप यह क्या कह रहे हैं ? आपके पथका अनुसरण ही हमारा प्रमुख कर्तव्य है । आपने हमारी रक्षा के लिये समस्त सांसारिक सुखों की १३०

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