Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 172
________________ भामाशाह दृश्य ६ स्थान-महाराणा का एक सैन्य शिविर । ( महाराणा प्रताप सिंह और भामाशाह ) प्रतापसिंह-भामाशाह ! आपकी सहायता मुझे वरदान-स्वरूप ही सिद्ध हो रही है । आपकी लक्ष्मी से पाणि-ग्रहण कर मेरा पौरुष कृत-कृत्य हो रहा है । सोते, जगते यही आभास होता है कि विजयश्री नीराजन पात्र लिये मुझे जय-तिलक करने आ रही हैं। भामाशाह-यह आभास मिथ्या नहीं, निकट भविष्य में ही हम इसे मूर्तिमान् देखेंगे। ____ प्रतापसिंह-मुझे प्रारम्भ से ही सफलता के संकेत मिल रहे हैं, शेरपुर पर आक्रमण हेतु जाते समय अमरसिंह को अनेक शुभ शकुन हुए । अतः विजय-प्राप्ति अवश्यम्भावी है। ___ भामाशाह-यवन सैनिकों की उपेक्षा भी हमारी सफलता की सहायिका बन रही है । बे हमें निर्बल और असहाय समझ मद्यपान और नत्यगान में मग्न हैं। __ प्रताप सिंह-अब चतुर्दिक से परिस्थितियां हमारे अनुकूल बनती जा रही हैं, शेरपुर के युद्ध-फल से हमारे भविष्य का निर्णय हो जायेगा । देखें, अमरसिंह विजय-सन्देश लेकर आते हैं या नहीं ? ( इसी क्षण एक सैनिक का प्रवेश ) सैनिक-महाराणा ! शेरपुर विजय कर युवराज विजय-सन्देश देने आ रहे हैं। ( गमन ) ( अमर सिंह का आगमन ) १३६

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