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भामाशाह
है । यदि आपका आदेश हो तो दूत द्वारा पत्र भेज कर उन्हें चित्तौड़ बुलवाया जाये।
उदय सिंह-अवश्य बुलवाइये और रणथम्भौर का दुर्ग-रक्षक नियुक्त कीजिये।
पटाक्षेप
दृश्य ५
स्थान--अलवर में भारमल्ल के भवन का द्वार समय-प्रभात बेला
( षटवर्षीय ‘भामा' का एक लघु धनुष और वाण लिये द्वार से बहिरागमन पुनः भित्ति पर क्षीण सूत्र के सहारे लटकते हुए कन्दुक की ओर शर संचालन, नत्काल ही शर के आघात से कन्दुक का भूपतन, इसी क्षण चित्तौड़ के राजदूत को प्रवेश। )
दूत-कुमार ! तुम्हें लक्ष्यवेध का सुन्दर अभ्यास है, ज्ञात होता है तुम्हारी धनुर्वेद की शिक्षाके लिये कोई योग्य धनु-विशारद नियुक्त है ।
भामा-नहीं, मेरी शस्त्र-शिक्षा के लिये कोई भी शिक्षक नियुक्त नहीं किया गया।
दूत-पर शिक्षक के अभाव में भी धनुर्विद्या में इतनी दक्षता मुझे विस्मित कर रही है । सम्भवतः तुम्हारे तात ही अभ्यास कराते होंगे।
भामाशाह-आपका अनुमान यथार्थ है, यह पितृवर के ही शिक्षण का फल है।