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भामाशाह
अलको०-नहीं, वह अपनी सहचरियों के साथ 'फूल डोल' का उत्सव मनाने 'प्रमोद वन' गयी है । आती ही होगी।
( इसी क्षण वक्षस्थल में चमेली की माला, कर्णों में केतकी के कर्णफल,, ललाट पर बेला का बेंदो और भुजाओं में मालती के भुजबन्धों से अलंकृत किशोरी मनोरमा का प्रवेश )
भोमा-आ गयी मनो ! पर तूने इतना विलम्ब कहां लगाया ?
मनो०-कहीं नहीं पितृवर ! प्रमोद वन में ही फूलडोल के उत्सव में समय का ध्यान नहीं रहा।
भोमा-क्या आज का समारोह इतना लुभावना था ? मनो०-निस्सन्देह तात!
भोमा-( उत्सुकता से ) यदि ऐसा है तो संक्षेप में मुझे भी वहां का वर्णन सुना। ___ मनो०-सुनिये, आज का फूलडोल पर्व 'यथा नाम तथा गुणाः' था, सारे प्रमोद वन में सुमनों का सागर-सा ही उमड़ पड़ा था। अनेकों किशोर कुसुमों के ही किरीट और कुसुमों के ही कंठहार धारण कर कमनीय कानन-कुमारों-सी क्रीड़ा कर रहे थे और अनेकों किशोरियां भी कुसुमों के कण्ठहार कर्णफूल आदि अलंकारों से शिख से नख तक अलंकृत कानन-कुमारियों-सी किलकारियां भर रही थीं। कोई रसाल की डाल पर हिंडोला झूल मल्हार गाती थी, कोई स्वयं वंशीधर श्रीकृष्ण बन और सखी को राधा बना रास लीला का अभिनय करती थी। कोई राधा बन मान करती थी और कोई कृष्ण बन
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मेवाड़ का एक प्रसिद्ध पर्व । टाड राजस्थान पृष्ठ सं० ७२६-७२७