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भामाशाह
दृश्य २
स्थान-उदयपुर का सभाभवन ।
( सिंहासन पर राणा प्रताप सिंह और उनके समक्ष भामाशाह, ताराचन्द्र तथा अन्य सभासद )
प्रताप सिंह-सामन्तों ! भगवान एकलिंग की कृपा और आप सब के सत्प्रयत्न से मुझे इस सिंहासन पर बैठने का सुयोग प्राप्त हुआ है, वस्तुतः मुझे शासन करने की नहीं, प्रिय मातृभूमि की सेवा करने की लालसा थी। सौभाग्यसे इस पद द्वारा अब मैं अपनी यह लालसा पूर्ण कर सकता हूं। ___ भामाशाह-महाराणा ! आपसे मेवाड़ के नागरिकों को ऐसी ही आशाएं हैं, यही कारण है जो उसने आपके ही भाल को राजमुकुट से अलंकृत किया है। ___ प्रताप सिंह-पर मुझे यह राजमुकुट पाने की प्रसन्नता नहीं, प्रसन्नता इस बात की है कि मुझे स्वर्ग से भी गौरवशालिनी जन्मभूमि की सेवा का सौभाग्य मिला है। पर यह सेवा-कार्य इतना कठिन है कि एकाकी इसे नहीं निभाया जा सकता । इसके लिये आप सबका सहयोग अपेक्षित होगा। ___ भामाशाह-महाराणा ! राज्य का प्रत्येक नागरिक इसके लिये सदैव तत्पर रहेगा। प्रताप सिंह-(सहास्य ) और आप भी ? भामाशाह-अवश्य ।