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भामाशाह कब वैभव-सम्पन्न होंगे ? जाने कब उसके निष्प्राण सौंदर्य में प्राणप्रतिष्ठा होगी ?
ताराचन्द्र-अब उसके उद्धार का स्वप्न देखना व्यर्थ है । जब उद्धारकर्ता ही इस विनाश का कारण है तो फिर किससे उद्धार की आशा की जा सकती है?
मारमल-वर्तमान राणा से तो कोई आशा नहीं। पर सम्भव है कोई भावी वंशधर अपने पूर्वजों की इस प्रिय नगरी के पुनरूद्धारकी ओर ध्यान दे।
। एक दूत का आगमन और भारमल्ल के हस्त में पत्र देकर गमन, भारमल्ल का पत्र-पठन )
भामाशाह --( उत्सुकता पूर्वक ) पितृवर ! यह पत्र किसका है ? भारमल्ल-यह पत्र हमारे महाराणा उदयसिंह का है।
भामाशाह - ( विस्मय से ) वे इस समय कहां हैं ? मुझे उनकी दशा जानने की उत्कंठा है।
मारमल्ल-दशा कुछ मत पूछो। बे यहां से भाग कर राजापिप्ली नामक वनमें कष्टपूर्वक दिन व्यतीत करते रहे। अब वहांसे गिल्होट नामक स्थान में चले गये हैं और एक नवीन नगर बसा रहे हैं।
भामाशाह-पूर्वजों की पुण्य नगरी को श्मसान बनाकर नये नगर का सृजन करना कहां की बुद्धिमत्ता है ? पर इस पत्र में उन्होंने आपको क्या लिखा है ?
भारमल्ल-इस पत्र द्वारा उन्होंने मुझे अपने नवीन नगर में आमन्त्रित किया है, अब मुझे वहां शीघ्र ही पहुंचना पड़ेगा।