Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Hiralal Pannalal Jain View full book textPage 7
________________ 63 अपनी समझके अनुसार उसके संशोधनका परामर्श दे रहे थे । मैं खुद भी इसके विषयमें सशंकित था, जैसाकि मेरे लिखे 'स्वामी समन्तभद्र' नामक इतिहाससे प्रकट है । परन्तु उस वक्तसे मेरा बराबर प्रयत्न ऐसी साधन-सामग्रीकी खोजका रहा है जिससे महावीरके समयका बिलकुल ठीक निश्चय होजाय । उसी खोजका सफल परिणाम यह निबन्धका उत्तरार्ध है और इसके द्वारा पिछली. अनेक भूलों,त्रुटियों, ग़लतियों अथवा शंकाओंका संशोधन हो गया है । जहाँ तक मुझे मालूम है प्रचलित वीरनिर्वाण-संवत्को इतने युक्तिबल के साथ सत्य प्रमाणित करनेवाला यह पहला ही लेख था। इसके प्रकट होने पर इतिहासके सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० नाथूरामजी प्रेमीने लिखा था "आपका वीरनिर्वाण संवत्-वाला ( महावीरका समय ) लेख बहुत ही महत्वका है और उससे अनेक उलझनें सुलझ गई हैं" | मुनि श्रीकल्याणविजयजीने सूचित किया था"आपके इस लेखकी विचारसरणी भी ठीक है" और पंडित बसन्तलालजीने इटावासे लिखा था “वीर-संवत्-सम्वन्धी लेख छोटा होने पर भी बड़े मार्केका है । यह लेख उन विद्वानोंको जो इस विषयमें काफ़ी तौरसे सशंकित हैं स्थिर विचार करने में काफी सहायता देगा" । इस निबन्धके प्रकाशित होनेसे कोई छह महीने बाद--मई सन् १९३० में-मुनि श्रीकल्याणविजयजीका वीरनिर्वाणसंवत् और जैनकालगणना' नामका एक विस्तृत निबन्ध नागरी प्रचारिणी पत्रिकाके १०वें भागके ९वें अंकमें प्रकट हुआ, जिसमें बहुत कुछ ऊहापोह के साथ प्रचलित वीरनिर्वाणसंवत् पर की जाने वाली आपत्तियोंका निरसन करते हुए उसकी सत्यताका समर्थन किया गया । साथही स्पष्टरूपमें यह सूचना भी की गई कि प्रचलित वीरनिर्वाण-संवत्के अंकसमूहको गतवर्षोंका वाचक समझना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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