Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 21
________________ १२ भगवान् महावीर और उनका समय कर डाला, और इस तरह कार्तिक वदि अमावस्याके दिन 8, * धवल सिद्धान्तमें, “पच्छा पावाणयरे कत्तियमासे यकिण्हचोदसिए। सादीए रत्तीए सेसरयं छत्तु णिव्वानो ॥” इस प्राचीन गाथाको प्रमाणमें उदधृत करते हुए, कार्तिक वदि चतुर्दशीकी रात्रिको (पच्छिमभाए-पिछले पहरमें) निर्वाणका होना लिखा है। साथ ही, केवलोत्पत्तिसे निर्वाण तकके समय २६ वर्ष ५ महीने २० दिनकी संगति ठीक विठलाते हुए, यह भी प्रतिपादन किया है कि अमावस्याके दिन देवेंद्रोंके द्वारा परिनिर्वाणपूजा की गई है वह दिन भी इस कालमें शामिल करने पर कार्तिकके १५ दिन होते हैं । यथा :___ "अमावसीए परिणिव्वाणपूजा सयलदेविदेहि कया त्ति तंपि दिवसमेत्थेव पक्खित्ते पण्णारस दिवसा होति ।” ___ इससे यह मालूम होता है कि निर्वाण अमावस्याको दिनके समय तथा दिनके वाद रात्रिको नहीं हुआ, बल्कि चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तिम भागमें हुआ है जब कि अमावस्या आ गई थी और उसका सारा कृत्य-निर्वाणपूजा और देहसंस्कारादि-अमावस्याको ही प्रातःकाल आदिके समय भुगता है। इसीसे कार्तिककी अमावस्या आम तौर पर निर्वाणकी तिथि कहलाती है। और चूंकि वह रात्रि चतुर्दशीकी थी इससे चतुर्दशीको निर्वाण कहना भी कुछ असंगत मालूम नहीं होता । महापुराणमें गुणभद्राचार्य ने भी “कार्तिककृष्णपक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये” इस वाक्यके द्वारा कृष्ण चतुर्दशीकी रात्रि को उस समय निर्वाणका होना बतलाया है जब कि रात्रि समाप्तिके करीब थी। उसी रात्रिके अंधेरेमें, जिसे जिनसेनने हरिवंशपुराणमें "कृष्णभूतसुप्रभातसंध्यासमये” पदके द्वारा उल्लेखित किया है, देवेन्द्रों द्वारा दीपावली प्रज्वलित करके निर्वाणपूजा किये जानेका उल्लेख है और वह पूजा धवलके उक्त वाक्यानुसार अमावस्याको की गई है। इससे चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तिम भागमें अमावस्या आ गई थी यह स्पष्ट जाना जाता है । और इस लिये अमावस्या को निर्वाण बतलाना बहुत युक्ति युक्त है, उसीका श्रीपूज्यपादाचार्यने "कार्तिककृष्णस्यान्ते" पदके द्वारा उल्लेख किया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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