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महावीरका समय देखकर बड़ा हो आश्चर्य होता है । हमें तो बैरिष्टर साहबकी ही साफ भल नजर आती है । मालूम होता है उन्होंने न तो हेमचंद्रके परिशिष्ट पर्वको ही देखा है और न उसके छठे पर्वके उक्त श्लोक नं०२४३ के अर्थ पर ही ध्यान दिया है, जिसमें साफ तौर पर वीरनिर्वाणसे ६० वर्षके बाद नन्द राजाका होना लिखा है । अस्तु चन्द्रगप्तके राज्यारोहण समयकी १५५ वर्षसंख्यामें आगेके २५५ वर्ष जोड़नेसे ४१० हो जाते हैं, और यही वीरनिर्वाणसे विक्रमका राज्यारोहणकाल है । परंतु महावीरकाल और विक्रमकालमें ४७० वर्षका प्रसिद्ध अन्तर माना जाता है और वह तभी बन सकता है जब कि इस राज्यारोहणकाल ४१० में राज्यकालके ६० वर्ष भी शामिल किये जावें । ऐसा किया जाने पर विक्रमसंवत् विक्रमकी मृत्युका संवत् होजाता है और फिर सारा ही झगड़ा मिट जाता है। वास्तवमें, विक्रमसंवत्को विक्रमके राज्याभिषेकका संवत् मान लेने की ग़लतीसे यह सारी गड़बड़ फैली है । यदि वह मृत्यका संवत् माना जाता तो पालकके ६० वर्षोंको भी इधर शामिल होनेका अवसर न मिलता और यदि कोई शामिल भी कर लेता तो उसकी भल शीघ्र ही पकड़ली जाती । परन्तु राज्याभिषेकके संवत्की मान्यताने उस भलको चिरकाल तक बना रहने दिया । उसीका यह नतीजा है जो बहुतसे ग्रन्थोंमें राज्याभिषेक-संवत्के रूपमें ही विक्रमसंवत्का उल्लेख पाया जाता है और कालगणनामें कितनी ही गड़बड़ उपस्थित हो गई है, जिसे अब अच्छे परिश्रम तथा प्रयत्नके साथ दूर करनेकी जरूरत है।
इसी गलती तथा गड़बड़को लेकर और शककालविषयक त्रिलोकसारादिकके वाक्योंका परिचय न पाकर श्रीयुत एस. वी.
उक्टेश्वरने, अपने महावीर-समय-सम्बन्धी-The date of Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com