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महावीरका समय सोरठे वलहीए उप्पएणो सेवडो संघो ॥११॥ पंचसए छब्बीसे विकमरायस्स मरणपत्तस्स । दक्षिणमहुराजादो दाविडसंघो महामोहो ॥२८॥ सत्तसए तेवएणे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । णंदियडे वरगामे कहो संघो मुणेयव्वो ॥३८॥ विक्रमसंवत्के उल्लेखको लिये हुए जितने ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध हुए हैं उनमें, जहाँ तक मुझे मालूम है, सबसे प्राचीन ग्रंथ यही है । इससे पहले धनपालकी 'पाइअलच्छी नाममाला' (वि० सं० १०१९) और उससे भी पहले अमितगतिका 'सुभाषितरत्नसंदोह' ग्रंथ पुरातत्त्वज्ञों-द्वारा प्राचीन माना जाता था । हाँ, शिलालेखोंमें एक शिलालेख इससे भी पहिले विक्रमसंवत्के उल्लेखको लिये हुए है और वह चाहमान चण्ड महासेनका शिलालेख है, जो धौलपरसे मिला है और जिसमें उसके लिखे जानेका संवत् ८९८ दिया है। जैसा कि उसके निम्न अंशसे प्रकट है:
"वसु नव अष्टो वर्षा गतस्य कालस्य विक्रमाख्यस्य ।" ___ यह अंश विक्रमसंवत्को विक्रमकी मत्यका संवत बतलानेमें कोई बाधक नहीं है और न 'पाइअलच्छी नाममाला'का 'विक्कम कालस्स गए अउणती एणवी सुत्तरे सहस्सम्मि' अंश ही इसमें कोई बाधक प्रतीत होता है, बल्कि ये दोनों ही अंश एक प्रकारसे साधक जान पड़ते हैं, क्योंकि इनमें जिस विक्रमकालके बीतनेकी बात कही गई है और उसके बादके बीते हुए वर्षोंकी गणना की गई है वह विक्रमका अस्तित्वकाल-उसकी मत्यपर्यंतका समय-ही जान पड़ता है । उसीका मत्यके बाद बीतना प्रारंभ हुआ है । इसके सिवाय, दर्शनसारमें एक यह भी उल्लेख मिलता है कि उसकी गाथाएँ पर्वाचार्योंकी रची हुई हैं और उन्हें एकत्र
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