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भगवान महावीर और उनका समय संवत् ऐसा कुछ नाम नहीं दिया; फिर भी इस पद्य को पहले पद्यकी रोशनीमें पढ़नेसे इस विषयमें कोई संदेह नहीं रहता कि अमितगति प्राचार्यने प्रचलित विक्रमसंवतका ही अपने ग्रन्थों में प्रयोग किया है और वह उस वक्त विक्रमकी मृत्य का संवत् माना जाता था । संवत्के साथमें विक्रमकी मृत्युका उल्लेख किया जाना अथवा न किया जाना एक ही बात थी-उससे कोई भेद नहीं पड़ता था-इसीलिये इस पद्यमें उसका उल्लेख नहीं किया गया। पहले पद्यमें मुंजके राज्यकालका उल्लेख इस विषयका और भी खास तौरसे समर्थक है क्योंकि इतिहाससे प्रचलित वि० संवत् १०५० में मुंजका राज्यासीन होना पाया जाता है। और इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि अमितगतिने प्रचलित विक्रमसंवत्से भिन्न किसी दूसरे ही विक्रमसंवत्का उल्लेख अपने उक्त पद्योंमें किया है। ऐसा कहने पर मृत्युसंवत् १०५० के समय जन्मसंवत् ११३० अथवा राज्यसंवत् १११२ का प्रचलित होना ठहरता है और उस वक्त तक मुंजके जीवित रहनेका कोई प्रमाण इतिहासमें नहीं मिलता । मुंजके उत्तराधिकारी राजा भोजका भी वि० सं० १११२ से पूर्व ही देहावसान होना पाया जाता है।
अमितगति प्राचार्यके समयमें, जिस आज साढ़े नौ सौ वर्षके करीब हो गये हैं, विक्रमसंवत् विक्रमकी मृत्युका संवत् माना जाताथा यह बात उनसे कुछ समय पहलेके बने हुए देवसेनाचार्यके प्रन्थोंसे भी प्रमाणित होती है। देवसेनाचार्य ने अपना 'दर्शनसार' ग्रंथ विक्रमसंवत् ९९० में बनाकर समाप्त किया है। इसमें कितने ही स्थानों पर विक्रमसंवत्का उल्लेख करते हुए उसे विक्रमकी मत्युका संवत् सूचित किया है। जैसा कि इसकी निम्न गाथाओंसे प्रकट है:
छत्तीसे वरिससये विकमरायस्स मरणपत्तस्स । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com