Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 54
________________ महावीरका समय की मृत्यका संवत् मान लेने पर यह आपत्ति कायम नहीं रहती; क्योंकि जालचा टियरने वीरनिर्वाणसे ४१० वर्षके बाद विक्रमराजाका राज्यारंभ होना इतिहाससे सिद्ध माना है *। और यही समय उसके राज्यारंभका मत्युसंवत् माननेसे आता है। क्योंकि उसका राज्यकाल ६० वर्ष तक रहा है । मालम होता है जार्लचापटियरके सामने विक्रमसंवत्के विषयमें विक्रमकी मत्युका संवत् होनेकी कल्पना ही उपस्थित नहीं हुई और इसीलिये आपने वीरनिर्वाणसे ४१० वर्षके बाद ही विक्रम संवत्का प्रचलित होना मान लिया है और इस भल तथा ग़लतीके आधार पर ही प्रचलित वीरनिर्वाण संवत् पर यह आपत्ति कर डाली है कि उसमें ६० वर्ष बढ़े हुए हैं । इस लिये उसे ६० वर्ष पीछे हटाना चाहिये-अर्थात् इस समय जो २४६० संवत प्रचलित है उसमें ६० वर्ष घटाकर उसे२४०० बनाना चाहिये । अतःआपकी यह आपत्ति भी निःसार है और वह किसी तरह भी मान्य किये जानेके योग्य नहीं। अब मैं यह बतला देना चाहता हूँ कि जॉर्ल चापेंटियरने, विक्रमसंवत्को विक्रमकी मृत्युका संवत् न समझते हुए और यह जानते हुए भी कि श्वेताम्बर भाइयोंने वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका राज्यारंभ माना है, वीरनिर्वाणसे ४१० वर्ष बाद जो विक्रमका राज्यारंभ होना बतलाया है वह केवल उनकी निजी कल्पना अथवा खोज है या कोई शास्त्राधार भी उन्हें इसके लिये प्राप्त हुआ है । शास्त्राधार जरूर मिला है और उससे उन श्वेताम्बर विद्वानोंकी ग़लतीका भी पता चल जाता है जिन्होंने जिनकाल ___* देखो, जार्हचाटियरका वह प्रसिद्ध लेख जो इन्डियन एरिटक्केरी (जिल्द ४३वीं, सन् १९१४) की जून, जुलाई और अग तकी संख्याओंमें प्रकाशित हुआ है और जिसका गुजराती अनुवाद 'जैनसाहित्यसंशोधक के दूसरे खंडके द्वितीय अंकमें निकला है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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