Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 53
________________ ४४ भगवान् महावार आर भगवान महावीर और उनका समय है वह भी बिगड़ जाता है-सदोष ठहरता है--अथवा शककाल पर भी आपत्ति लाजिमी आती है जो हमारा इस कालगणनाका मूलाधार है, जिस पर कोई आपत्ति नहीं की गई और न यह सिद्ध किया गया कि शकराजाने भी वीरनिर्वाणसे ६८५ वर्ष ५ महीनेके बाद जन्म लेकर १८वर्षकी अवस्था में राज्याभिषेकके समय अपना संवत् प्रचलित किया है । प्रत्यत इसके, यह बात ऊपरके प्रमाणोंसे भले प्रकार सिद्ध है कि यह समय शकसंवत्की प्रवृत्तिका समय है--चाहे वह संवत् शकराजाके राज्यकालकी समाप्ति पर प्रवृत्त हुआ हो या राज्यारंभके समय--शकके शरीरजन्मका समय नहीं है । साथ ही, श्वेताम्बर भाइयोंने जो वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका राज्याभिषेक माना है * और जिसकी वजहसे प्रचलित वीरनिर्वाणसंवत्में १८ वर्षके बढ़ानेकी भी कोई जरूरत नहीं रहती उसे क्यों ठीक न मान लिया जाय, इसका कोई समाधान नहीं होता। इसके सिवाय, जार्लचापेंटिंयरकी यह आपत्ति बराबर बनी ही रहती है कि वीरनिर्वाणसे ४७० वर्षके बाद जिस विक्रमराजाका होना बतलाया जाता है उसका इतिहासमें कहीं भी कोई अस्तित्व नहीं है । परन्तु विक्रमसंवतको विक्रम* यथाः--विकमरजारंभा प(पु?)रो सिरिवीरनिव्वुई भणिया। सुत्र-मुणि-वेय-जुत्तो विक्कमकालाउ जिणकालो।। -विचारश्रेणि। x इस पर बैरिष्टर के. पी. जायसवालने जो यह कल्पना की है कि साताण द्वितीयका पुत्र 'पुलमायि'ही जैनियोंका विक्रम है-जैनियोंने उस के दूसरे नाम 'विलवय' को लेकर और यह समझकर कि इसमें 'क' को 'ल' हो गया है उसे 'विक्रम' बना डाला है-वह कोरी कल्पना ही कल्पना जान पड़ती है। कहींसे भी उसका समर्थन नहीं होता । (बैरिष्टर सा०की इस कल्पनाके लिये देखो, जैनसाहित्यसंशोधकके प्रथम खंडका चौथा अंक)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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