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महावीरका समय राज्यकाल भी वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष ५ महीने के अनन्तर समाप्त हो गया था और यही विक्रमसंवत्की प्रवृत्तिका काल है-तभी दोनों संवतोंमें १३५ वर्षका प्रसिद्ध अन्तर बनता है । और इस लिये विक्रम संवत्को भी विक्रमके जन्म या राज्यारोहणका संवत् न कह कर, वीरनिर्वाण या बनिर्वाण-संवतादिककी तरह, उसको स्मृति या यादगारमें कायम किया हुआ मृत्यु-संवत् कहना चाहिये। विक्रमसंवत् विक्रमकी मृत्युका संवत् है,यह बात कुछ दूसरे प्राचीन प्रमाणोंसे भी जानी जाती है, जिसका एक नमूना श्राअमितगति आचार्यका यह वाक्य है:
समारूढे पूतत्रिदशवसतिं विक्रमनृपे सहस्र वषाणां प्रभवति हि पंचाशदधिके। समाप्त पंचम्यामवति धरिणां मुंजनृपतौ सिते पक्षे पौषे बुधहितमिदं शास्त्रमनघम् ॥ इसमें, 'सुभाषितरत्नसंदोह' नामक ग्रन्थका समाप्त करते हुए, स्पष्ट लिखा है कि विक्रमराजाके स्वर्गारोहणके बाद जब १०५० वाँ वर्ष (संवत् ) बीत रहा था और राजा मुंज पृथ्वीका पालन कर रहा था उस समय पौष शुक्ला 'पंचमीके दिन यह पवित्र तथा हितकारी शास्त्र समाप्त किया गया है। इन्हीं अमितगति प्राचार्य ने अपने दूसरे ग्रन्थ 'धर्मपरीक्षा की समाप्तिका समय इस प्रकार दिया है :संवत्सराणां विगते सहस्र ससप्ततौ विक्रम पार्थिवस्य । इदं निषिध्यान्यमतं समाप्तं जैनेन्द्रधर्मामृतयुक्तिशास्त्रम् ॥
इस पद्यमें, यद्यपि, विक्रमसंवत् १०७० के विगत हाने पर ग्रंथकी समाप्तिका उल्लेख है और उसे स्वर्गारोहण अथवा मृत्युका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com