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.: महावीरका उद्धारकार्य ... १५ के यथार्थ स्वरूपका परिचय मिला, आत्मा-अनात्माका भेद स्पष्ट हुआ और बन्ध-मोक्षका सारा रहस्य जान पड़ा। साथ ही, झळ देवी-देवताओं तथा हिंसक यज्ञादिकों परसे उनकी श्रद्धा हटी और उन्हें यह बात साफ जॅच गई कि हमारा उत्थान और पतन हमारे ही हाथमें है, उसके लिये किसी गुप्त शक्तिकी कल्पना करके उसी: के भरोसे बैठ रहना अथवा उसको दोष देना अनुचित और मिथ्या है । इसके सिवाय, जातिभेदकी कट्टरता मिटी, उदारता प्रकटी, लोगोंके हृदयमें साम्यवादकी भावनाएँ दृढ हुई और उन्हें अपने आत्मोत्कर्षका मार्ग सझ पड़ा । साथ ही, ब्राह्मण गरुओंका आसन डाल गया, उनमेंसे इन्द्रभ त-गौतम जैसे कितने ही दिग्गज विद्वानोंने भगवान के प्रभावस प्रभावित हो कर उनकी समीचीन धर्मदेशनाको स्वीकार किया और वे सब प्रकारसे उनके परे अनुयायी बन गये । भगवान्नं उन्हें 'गणधर के पद पर नियुक्त किया और अपने संघका भार सौंपा। उनके साथ उनका बहुत बड़ा शिष्यसमुदाय तथा दूसरे ब्राहण और अन्य धर्मानयायी भी जैनधर्ममें दीक्षित होगये । इस भारी विजयसे क्षत्रिय गुरुओं और जैनधर्मकी प्रभाव-वद्धि के साथ साथ तत्कालीन (क्रियाकाण्डी) ब्राह्मणधर्मकी प्रभा क्षीण हुई, ब्राह्मणोंकी शक्ति घटी, उनके अत्याचारोंमें रोक हुई, यज्ञ-यागादिक कर्म मंद पड़ गये-उनमें पशुओंके प्रतिनिधियोंकी भी कल्पना होने लगी-श्र.र ब्राह्मणों के लौकिक स्वार्थ तथा जाति-पांतिके भेदको बहुत बड़ा धक्का पहुंचा। परन्तु निरंकुशताके कारण उनका पतन जिस तेजी से हो रहा था वह रुक गया और उन्हें सोचने-विचारनेका अथवा अपने धर्म तथा परिणतिमें फेरफार करनेका अवसर मिला। ___ महावीरकी इस धर्मदेशना और विजयके सम्बन्धमें कविस
म्राट डावीन्द्रनाथ टागोरने जोदो शब्द कहे हैं वे इसप्रकार हैं:Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com