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महावीर सन्देश
२९ भद्ररूप एवं सम्यग्दृष्टि बन जाताहै। अथवा यूं कहिये कि भन्महावीरके शासन-तीथ का उपासक और अनुयायी हो जाता है। इसी 'बातको स्वामी समन्तभद्र ने अपने निम्न वाक्य-द्वाराव्यक्त कियाहै
कामं द्विषनप्युपपतिचक्षुः समीक्षतां ते समदृष्टिरिष्टम् । त्वयि ध्रुवं खण्डितमानगो भवत्यभद्रोऽपि सपन्तभद्रः॥
-युक्तचनुशासन । अतः इस तीर्थके प्रचार-विषयमें जरा भी संकोचकी जरूरत नहीं है, पर्ण उदारताके साथ इसका उपर्युक्त रीतिसे योग्यप्रचारकोंके द्वारा खुला प्रचार होना चाहिये और सबोंको इस तीर्थको परीक्षाका तथा इसके गणोंको मालम करके इससे यथेष्ट लाभ उठानका पूरा अवसर दिया जाना चाहिये । योग्य प्रचारकोंका यह काम है कि वे जैसे तैसे जनतामें मध्यस्थभावको जाग्रत करें, ईर्षा-षादिरूप मत्सर भावको हटाएँ, हृदयोंको युक्तियोंसे संस्कारित कर उदार बनाएँ, उनमें सत्यकी जिज्ञासा उत्पन्न करें और उस सत्यकी दर्शनप्राप्तिके लिये लोगोंको समाधान दृष्टिको खोलें।
महावीर सन्देश हमारा इस वक्त यह खास कर्तव्य है कि हम भगवान महावीरके
सन्देशको-उनके शिक्षाममूहको-मालम करें, उस पर खुद अमल करें और दूसरोंसे अमल करानेके लिये उसका घर घरमें प्रचार करें । बहुतसे जैनशास्त्रोंका अध्ययन, मनन और मथन करने पर मुझे भगवान महावीरका जो सन्देश मालम हुआ है उसे मैंने एक छोटीसी कवितामें निबद्ध कर दिया है । यहाँ पर उसका देदिया जाना भी कुछ अनुचित न होगा। उससे थोड़ेमें ही-सत्ररूपसेमहावीर भगवानकी बहुतसी शिक्षाओंका अनुभव होसकेगाऔर उन पर चलकर उन्हें अपने जीवन में उतारकर-हम अपना तथा दूसरों का बहुत कुछ हित साधन कर सकेंगे । वह संदेश इस प्रकार है:-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com