Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 43
________________ ३४ भगवान महावीर और उनका समय के कालमें शककालको-शक संवत्की वर्षादि-संख्याको-जोड़ देनेसे महावीरका निर्वाणकाल--निर्वाण-संवत्का ठीक परिमाण -आ जाता है। और इस तरह वीरनिर्वाण-संवत् मालम करने की स्पष्ट विधि भी सूचित की है । धवलके वे वाक्य इस प्रकार हैं:___“सबकालसमासो तेयासीदिअहियछस्सदमेत्तो (६८३)। पुणो एत्थ सत्तमासाहियसत्तहत्तरिवासेसु (७७-७) श्रवणीदेसु पंचमासाहिय पंचुत्तर छस्सदवासाणि (६०५-५) हवंति, एसो वीरजिणिदणिव्वाणगददिवसादो जाव सगकालस्स आदी होदि तावदिय कालो । कुदो ? एदम्मि काले सगणरिंदकालस्स पक्खित्ते वडमाणजिणणिज्बुदकालागमणादो । वुत्तंच पंच य मासा पंच य वासा छच्चेव होंति वाससया । सगकालेण य सहिया थावेयन्बो तदो रासी॥" ___ --देखो, श्रारा जैनसिद्धान्तभवनकी प्रति,पत्र ५३७ इन सब प्रमाणोंसे इस विषयमें कोई संदेह नहीं रहता कि * इस प्राचीन गाथाका जो पूर्वाध है वही श्वेताम्बरोंके 'तित्थोगाली पहनय' नामक प्राचीन प्रकरणकी निम्न गाथाका पूर्वाध है पंच य मासा पंच य वासा छच्चेव होति वाससया । परिणिध्वुस्सऽरिहतो तो उप्पनो सगो राया ॥६२३ :: और इससे यह साफ़ जाना जाता है कि 'तित्थोगाली' की इस गाथामें जो ६०५ वर्ष ५ महीनेके बाद शकराजाका उत्पन्न होना लिखा है वह शककालके उत्पन्न होने अर्थात शकसंवतके प्रवृत्त होनेके प्राशयको लिये हुए है। और इस तरह महावीरके इस निर्वाणसमय-सम्बधमें दोनों सम्मबायोंकी एक वाक्यता पाई जाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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