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महावीरका समय शकसंवत्के प्रारंभ होनेसे ६०५ वर्ष ५ महीने पहले महावीरका निर्वाण हुआ है।
शक-संवन्के इस पर्ववर्ती समयको वर्तमान शक-संवत् १८५५ में जोड़ देनेसे २४६० की उपलब्धि होती है, और यही इस वक्त प्रचलित वीरनिर्वाण-संवत्को वर्षसंख्या है । शक-संवत् और विक्रम संवत्में १३५ वर्षका प्रसिद्ध अन्तर है । यह १३५ वर्षका
अन्तर यदि उक्त ६०५ वर्षमेंसे घटा दिया जाय तो अवशिष्ट ४७० वर्षका काल रहता है, और यही स्थल रूपसे वीरनिर्वाणके बाद विक्रम संवत्की प्रवृत्तिका काल है, जिसका शुद्ध अथवा पर्णरूप ४७० वर्ष ५ महीन है और जो ईस्वी सन्मे प्रायः ५२८ वर्ष पहले वीरनिर्वाणका होना बतलाता है । और जिसे दिगम्बर और श्वेताबर दोनों ही सम्प्रदाय मानते हैं । __ अब मैं इतना और बतला देना चाहता हूँ कि त्रिलोकसारकी उक्त गाथामें शकराजाके समयका-वीरनिर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने पहलेका-जो उल्लेख है उसमें उसका राज्यकाल भी शामिल है; क्योंकि एक तो यहाँ 'सगराजों के बाद 'तो' शब्दका प्रयोग किया गया है जो 'ततः' (तत्पश्चात् ) का वाचक है और उससे यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि शकराजाकी सत्ता न रहने पर अथवा उसकी मृत्युसे ३९४ वर्ष ७ महीने बाद कल्की राजा हुआ। दूसरे, इस गाथामें कल्कीका जो समय वीरनिर्वाणसे एक हजार वर्ष तक (६०५ वर्ष ५ मास + ३९४ व०७ मा०) बतलाया गया है उसमें नियमानसार कल्कीका राज्य काल भी आ जाता है, जो एक हजार वर्षके भीतर सी मत रहता है । और तभी हर हजार वर्ष पोछे एक कल्कीके होने का वह नियम बन सकताहै जो त्रिलोकसारादि ग्रंथोंके निम्न वाक्योंमें पाया जाता है:--
इदि पडिसहस्सवस्सं बीसे कक्कीणदिक्कमे चरिमो । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com