________________
भगवान महावीर और उनका समय जलमंथणो भविस्सदि कक्की सम्मग्गमत्थरणओ ।। ८५७ ।।
--त्रिलोकसार। मुक्तिं गते महावीरे प्रतिवर्षसहस्रकम् । एकैको जायते कल्की जिनधर्म-विरोधकः ॥
-हरिवंशपुराण । एवं वस्ससहस्से पुह कक्की हवेइ इक्केको ।
--त्रिलोकप्रज्ञप्ति। इसके सिवाय, हरिवंशपराण तथा त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें महावीरके पश्चात् एक हजार वर्षके भीतर होने वाले राज्योंके समयकी जो गणना को गई है उसमें साफ तौर पर कल्किराज्यके ४२ वर्ष शामिल किये गये हैं * । ऐसी हालतमें यह स्पष्ट है कि त्रिलोकसारकी उक्त गाथामें शक और कल्कीका जो समय दिया है वह अलग अलग उनके राज्य-कालकी समाप्तिका सूचक है । और इस लिये यह नहीं कहा जा सकता कि शक राजाका राज्यकाल वीर-निर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद प्रारंभ हुआ और उसकीउसके कतिपय वर्षात्मक स्थितिकालकी--समाप्ति के बाद ३९४ वर्ष ७ महीने और बीतने पर कल्किका राज्यारंभ हुआ। ऐसा कहने ____ * श्रीयुत के० पी० जायसवाल बैरिष्टर पटनाने, जुलाई सन् १९१७ की 'इन्डियन एंटिक्वेरी' में प्रकाशित अपने एक लेखमें, हरिवंशपुराणके 'द्विचत्वारिंशदेवातः कल्किराजस्य राजता' वाक्यके सामने मौजूद होते हुए भी, जो यह लिख दिया है कि इस पुराणमें कल्किराज्यके वर्ष नहीं दिये, यह बड़े ही आश्चर्य की बात है । आपका इस पुराणके आधार पर गुप्तराज्य और कल्किराज्यके बीच ४२ वर्षका अन्तर वतलाना और कल्किके अस्तकालको उसका उदयकाल ( rise of Kalki) सूचित कर देना बहुत बड़ी ग़लती तथा भूल है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com