Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 32
________________ . सर्वोदय तीर्थ . [पृष्ठ २२ के फुटनोट का शेष भाग "उच्चावचजनप्रायः समयोऽयं जिनेशिनां । नैस्किमन्पुरुष तिष्ठेदेकस्तम्भ इवालयः ॥" -यशस्तिलके, सोमदेवः। (२) "आचाराऽनवद्यत्वं शुचिरुपस्कारः शरीरशहिश्च करोति शूदानपि देवद्विजातितपस्विपरिकर्मसुयोग्यान् ।” नीतिवाक्यामृते, सोमदेवः । (३) “शूदोऽप्युपस्कराचारवपुः शुध्याऽस्तु तादृशः । जात्या हीनोऽपि कालादिलब्धौ ह्यात्मास्ति धर्मभाक्" २-२२॥ -सागार धर्मामृते, प्राशावरः। इन सव वाक्योंका आशय क्रमशः इस प्रकार है :(१) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीनों वर्ण (आम तौर पर)मुनिदीक्षाके योग्य हैं और चौथा शूद्र वर्ण विधिके द्वारा दीक्षाके योग्य है । (वास्तवमें ) मन-वचन-कायसे किये जाने वाले धर्मका अनुष्ठान करनेके लिये सभी जीव अधिकारी हैं।' 'जिनेन्द्रका यह धर्म प्रायः ऊँच और नीच दोनों ही प्रकारके मनुष्योंके आश्रित है, एक स्तंभके आधार पर जैसे मकान नहीं ठहरता उसी प्रकार ऊँच-नीचमेंसे किसी एक ही प्रकारके मनुष्यसमूहके आधार पर धर्म ठहरा हुआ नहीं है।' -यशस्तिलक __ (२) 'मद्य-मांसादिकके त्यागरूप आचारकी निदोषता, गृह पात्रादिककी पवित्रता और नित्य-स्नानादिके द्वारा शरीरशुदि ये तीनों प्रवृत्तियाँ (विधियाँ ) शूद्रोंको भी देव, द्विजाति और तपस्वियोंके परिकर्मोंके योग्य बना देती हैं।' -नीतिवाक्यामृत । (३) 'आसन और वर्तन आदि उपकरण जिसके शुद्ध हों,मा-मांसादिके त्यागसे जिसका आचरण पवित्रहो और नित्य स्नानादिके द्वारा जिसका शरीर शुद्ध रहता हो, ऐसा शूद भी ब्राह्मणादिक वर्णों के सहश धर्मका पालन करनेके योग्य है क्योंकि जातिसे हीन भात्मा भी कालादिक लब्धिको पाकर जैनधर्मका अधिकारी होता है। -सागारधर्मामृत । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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