Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 35
________________ भगवान महावीर और उनका समय कुलशुद्धि करके उन्हें अपने में मिला लेने तथा मुनि-दीक्षा आदिके द्वारा ऊपर उठानेको स्पष्ट आज्ञाएँभी इस शासनमें पाई जाती हैं। * जैसा कि निम्न वाक्योंसे प्रकट है :१. कुतश्चित्कारणाद्यस्य कुलं सम्प्राप्तदूषणं । सोपि राजादिसम्मत्या शोधयेत्स्वं यदा कुलम् ॥ ४०-१६८ ।। तदाऽस्योपनयाहत्वं पुत्रपौत्रादिसन्ततौ । न निषिद्धं हि दीक्षा कुले चेदस्य पूर्वजाः ॥ –१६६ ।। २. स्वदेशेऽनक्षरम्लेच्छान् प्रजानाधाविधायिनः। कुलशुद्धिप्रदानाद्यैः स्वसाकुर्यादुपक्रमैः।। ४२-१७६ ।। -आदिपुराणे, जिनसेनः । ३. "मलेच्छभूमिजमनुप्याणां सकलसंयमग्रहणं कथं भवतीति नाशंकितव्यं । दिग्विजयकाले चक्रवर्तिना सह आर्यखण्डमागतानां म्लेच्छराजानां चक्रवादिभिः सह जातवैवाहिकसम्बन्धानां संयमप्रतिपत्तरविरोधात् । अथवा तत्कन्यानां चक्रवर्त्यादिपरिणीतानां गर्भेषत्पन्नत्य मातृपक्षापेक्षया म्लेच्छव्यपदेशभाजः संयमसंभवात् तथाजातीयकानां दीक्षाहत्वे प्रतिषेधाभावात ॥" -लब्धिसारटीका (गाथा १६३ वीं) [नोट-म्लेच्छोंकी दीक्षा-योग्यता, सकलसंयम-ग्रहणकी पात्रता और उनके साथ वैवाहिक सम्बधादिका यह सब विधान जयधवल सिद्धान्तमें भी इसी क्रमसे प्राकृत और संस्कृत भाषामें दिया है । वहीं परसे भाषादिरूप थोड़ासा शब्द-परिवर्तन करके लब्धिसारटीकामें लिया गया मालूम होता है । जैसा कि धयधवलके निम्न शब्दोंसे प्रकट है :--] “जइ एवं कुदो तत्थ संज्मग्गहणसंभवो त्तिणासंकणिज । दिसाविजय पयटचक्वहि खंधावारेण सह मझिमखंडमारयाणं मिलेच्छएयाणं तत्थ चकवटि आदीहिं सह जादवेवाहियसंबंधाणं संजमपडिवतीए विरोहाभावादी । महवा तत्तत्कन्यकानां चक्रवत्यादिपरिणीतानां गर्भेषत्पना मातृपक्षापेक्षया स्वयमकर्मभूमिजा इतीह विवक्षिताः ततो न किंचिद्विप्रतिषिह। तथाजातीयकानां दीक्षार्हत्वे प्रतिषेधाभावादिति।''- जयथवल,पारा-प्रति, पत्र ८२७-२८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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