Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 20
________________ महावीर-परिचय में शारीरिक सम्बन्ध भी था । उनमें आपके धर्मका बहुत प्रचार हुआ और उसे अच्छा राजाश्रय मिला है । विहारके समय महावीरके साथ कितने ही मुनि-आर्यिकाओं तथा श्रावक-श्राविकाओंका संघ रहता था। आपने चतुर्विध संघ को अच्छी योजना और बड़ी ही सुन्दर व्यवस्था की थी । इस संघके गणधरोंकी संख्या ग्यारह तक पहुंच गई थी और उनमें सबसे प्रधान गौतम स्वामी थे, जो 'इन्द्रभति' नामसे भी प्रसिद्ध हैं और समवसरण में मुख्य गणधरका कार्य करते थे। ये गोतम-गोत्री और सकल वेद-वेदांगके पारगामी एक बहुत बड़े ब्राह्मण विद्वान् थे, जो महावीरको केवलज्ञानकी संप्राप्ति होनेके पश्चात् उनके पास अपने जीवाऽजीव-विषयक संदेहके निवारणार्थ गये थे, संदेहकी निवत्ति पर उनके शिष्य बन गये थे और जिन्होंने अपने बहुतसे शिष्योंके साथ भगवान्से जिनदीक्षा लेली थी । अन्तु। __ तीस वर्षके लम्बे विहारको समाप्त करते और कृतकृत्य होते हुए, भगवान् महावीर जब पावापरके एक सुन्दर उद्यानमें पहुँचे, जो अनेक पद्मसरोवरों तथा नाना प्रकारके वक्षसमूहोंसे मंडित था, तब आप वहाँ कायोत्सर्गसे स्थित हो गये और आपने परम शुक्लध्यानके द्वारा योगनिरोध करके दग्धरजु-समान अवशिष्ट रहे कर्म रजको-अघातिचतुष्टयको--भी अपने आत्मासे पृथक ___ * धवल सिद्धान्तमें और जयववलमें भी कुछ आचायोंके मतानुसार एक प्राचीन गाथाके आधार पर विहारकालकी संख्या २६ वर्ष ५ महीने २० दिन भी दी है, जो केवलोत्पत्ति और निर्वाणकी तिथियोंको देखते हुए ठीक जान पड़ती है । और इस लिये ३० वर्ष की यह संख्या स्थूलरूपसे समझनी चाहिये । वह गाथा इस प्रकार है: वासाणूणत्तीसं पंच य मासे य वीसदिवसे य । चउविहअणगारे बारहहि गणेहि विहरंतो ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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