Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 14
________________ जाते है , अटल साहस महावीर-परिचय कुछ घटनाओंको मालूम करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं । परन्तु साथ ही आपके असाधारण धैर्य, अटल निश्चय, सुदृढ़ आत्मविश्वास, अनुपम साहस और लोकोत्तर क्षमाशीलताको देखकर हृदय भक्तिसे भर आता है और खुद-बखुद (स्वयमेव ) स्तुति करनेमें प्रवृत्त हो जाता है । अस्तु ; मनःपर्ययज्ञानकी प्राप्ति तो आपको दीक्षा लेनेके बाद ही होगई थी परन्तु केवलज्ञान-ज्योतिका उदय बारह वर्षके उग्र तपश्चरणके बाद वैशाख सुदि १० मीको तीसरे पहरके समय उस वक्त हुआ जब कि आप जम्भका ग्रामिक निकट ऋजुकूला नदीके किनारे, शाल वृक्षके नीचे एक शिला पर, षष्ठोपवाससे युक्त हुए, क्षपकश्रेणि पर आरूढ थे आपने शुक्ल ध्यान लगा रक्खा था-और चन्द्रमा हस्तोत्तर नक्षत्रके मध्यमें स्थित था के । जैसा कि श्रीपज्यपादाचार्यके निम्न वाक्योंसे प्रकट ग्राम-पुर-खेट-कर्वट-मटम्ब-घोषाकरान् प्रविजहार । . उग्रैस्तपोविधानै दशवर्षाण्यमरपूज्यः ॥ १० ॥ · ऋजकूलायास्तीरे शालद्रुमसंश्रिते शिलापट्टे । ' अपराह्ने षष्ठेनास्थितस्य॑ खलु जम्भकाग्राम ॥११॥ *केवलज्ञानोत्पत्ति के समय और क्षेत्रादिका प्रायः यह सवर्णन धमल' और 'जयधवल' नामके दोनों सिद्धान्तप्रन्थोंमें उद्धृत तीन प्राचीन गाथाओंमें भी पाया जाता है, जो इस प्रकार हैं: गमइय छदुमत्थत्तं वारसवासाणि पंचमासे य । पएणारसाणि दिणणि य तिरयणसुडो महावी ॥१॥ उजुकूलणदीतीरे जंभियगामे वहिं सिलाव?'। छ?णादावेंतो अबरण्हे पायछायाए ॥ २ ॥ वइसाहजोएहपक्खे दसमीए खवगसेढिमारुहो। हंतूण घाइकम्मं केवलणाणं समावएणो ॥ ३ ॥ .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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