Book Title: Bhagwan Mahavir aur Unka Samay
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hiralal Pannalal Jain

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Page 12
________________ महावीर परिचय दर्शनमात्रसे उनका वह सब संदेह तत्काल दूर हो गया और इस लिये उन्होंने बड़ी भक्तिसे आपका नाम 'सन्मति' रक्खा * । दूसरी यह कि, एक दिन आप बहुतसे राजकुमारोंके साथ वनमें वृक्षकोड़ा कर रहे थे, इतनेमें वहाँ पर एक महाभयंकर और विशालकाय सर्प आ निकला और उस वृक्षको ही मूलसे लेकर स्कंध पर्यन्त बेढ़कर स्थित हो गया जिस पर आप चढ़े हुए थे । उसके विकराल रूपको देखकर दूसरे राजकुमार भयविह्वल हो गये और उसी दशामें वृक्षों परसे गिर कर अथवा कूद कर अपने अपने घरको भाग गये। परन्तु आपके हृदयमें जरा भी भयका संचार नहीं हुआ-आप बिलकुल निर्भयचित्त होकर उस काले नागसेही क्रीड़ा करने लगे और आपने उस पर सवार होकर अपने बल तथा पराक्रमसे उसे खब ही घमाया, फिराया तथा निर्मद कर दिया। उसी वक्तसे श्राप लोकमें 'महावोर' नामसे प्रसिद्ध हुए । इन दोनों+ घटनाओंसे यह स्पष्ट जाना जाता है कि महावीरमें बाल्यकालसे ही बुद्धि और शक्तिका असाधारण विकास हो रहा था और इस प्रकारकी घटनाएँ उनके भावी असाधारण व्यक्तित्वको सचित करती थीं । सो ठीक ही है "होनहार बिरवानके होत चीकने पात" । * संजयस्यार्थसंदेहे संजाते विजयस्य च । जन्मानन्तरमेवैनमभ्येत्यालोकमावतः ॥ तत्संदेहगते ताभ्यां चारणाभ्यां स्वभक्तितः । अस्त्वे सन्मतिर्देवो भावीति समुदाहृतः ॥ -महापुराण, पर्व ७४ वाँ। + इनमेंसे पहली घटनाका उल्लेख प्रायः दिगम्बर अन्योंमें और दुसरीका दिगम्बर तथा शेताम्वर दोनों ही सम्पदायके पन्थोंमें बहुलतासे पाया जाता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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