Book Title: Bhagawan Mahavir Smaranika 2009
Author(s): Mahavir Sanglikar
Publisher: Jain Friends Pune

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Page 9
________________ इस्लाम धर्म और जैन धर्म - आचार्य तुलसी इस संसार में अनेक धर्म हैं। हर धर्म के अनुयायियों का काम भी यही होता है। वे धर्म कपडे हाथों से धोते थे और जूते स्वयं साफ अनुयायी बडी संख्या में हैं। अनुयायी होना के मूल स्वरूप को समझने का प्रयास नहीं करते थे। वे जातिवाद और दासप्रथा के कट्टर एक बात है और धार्मिक होना दूसरी बात है। करते। धर्म की व्यापकता को स्वीकार करने विरोधी थे। अपरिग्रह के सिद्धान्त में उनकी जो लोग केवल अनुयायी होते हैं, वे धर्म की में उनको अपने अस्तित्व का खतरा दिखाई आस्था थी। उन्होंने देखा कि उनकी लडकी पृष्ठभूमि से परिचित नहीं हो सकते। व्यक्ति जिस देता है। इसी कारण वे सम्प्रदाय को धर्म से फातिमा ने सोने के आभूषण पहन रखे हैं। उन्हें धर्म में आस्था रखता हैं, जिस धर्म का ऊपर प्रतिष्ठित करने में संलग्न रहते है। अच्छा नहीं लगा। उनके आदेश से फातिमा आचरण करता हैं, उसका ज्ञान होना जॉर्ज बर्नाड शॉ ने एक दिन अपने भाषण ने आभूषण उतार दिए। आवश्यक है। स्वीकृत धर्म के सम्बन्ध में में इस्लाम धर्म की प्रशंसा की। श्रोताओं में से जैन धर्म में भी श्रम और स्वावलम्बन की अनजान व्यक्ति किसी दूसरे धर्म या दर्शन का एक व्यक्ति खडा हुआ। अपनी जिज्ञासा के पूरी प्रतिष्ठा है। भगवान महावीर ने राज परिवार अध्ययन करेगा तो वह संदिग्ध हो जाएगा। पंख खोलते हुए उसने कहा - 'शॉ! आप में जन्म लिया। वे सब प्रकार की सुख - ऐसा व्यक्ति नो हव्वाए नो पाराए' न इधर का इस्लाम धर्म स्वीकार करेंगे?' बर्नाड शॉ ने सुविधाओं में पले। राज्य का संपूर्ण वैभव उनके रहता है और न उधर का रहता है। किन्हीं दो नकारात्मक उत्तर दिया। वह व्यक्ति फिर बोला उपभोग हेतु था। पर उन्होंने घर में रहते हुए भी धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करते समय दो - 'आप इसकी इतनी प्रशंसा कैसे करते है?' एक संन्यासी जैसा जीवन बिताना शुरू कर बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना अपेक्षित है- बर्नाड शॉ ने कहा - ‘इस्लाम धर्म तो बहुत दिया। उनके त्याग और विराग की तुलना में * दूसरे धर्म या दर्शन को पढने से पहले अच्छा है, पर मुसलमान अच्छा नहीं है।' धर्म राज्य का वैभव तुच्छ हो गया। तीस वर्ष की अपने धर्म का गम्भीर अध्ययन करना। का प्रतिबिम्ब अनुयायियों के जीवन पर पडना अवस्था में वे गृहत्यागी मुनि बन गए! बारह * दूसरे धर्म के बारे में इधर-उधर की चाहिए। व्यक्ति धार्मिक बन जाए और वर्ष की कठोर साधना के बाद उनको केवलज्ञान सामग्री न बटोरकर उसके ग्रंथों का मूलस्पर्शी साम्प्रदायिक संकीर्णता से ऊपर न उठ पाए उपलब्ध हुआ। ज्ञानोपलब्धि के बाद उन्होंने अध्ययन करना। तो वह धार्मिक कैसे होगा? जनता को अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त बर्नाड शॉ की बात केवल इस्लाम धर्म पर का रास्ता बताया। जातिवाद और दासप्रथा धर्म सम्प्रदाय से ऊपर है ही नहीं, सभी धर्मों पर लागू होती है। इस दृष्टि के खिलाफ जिहाद छेडा। नारी जाति के प्रति मुहम्मद साहब इस्लाम धर्म के प्रवर्तक थे। से कहा जा सकता है कि जैन धर्म बहुत ऊंचा बरती जा रही विषमताओं की जडे उखाडी। उनका दृष्टिकोण व्यापक था। वे सम्प्रदाय के है, पर आज का जैन अच्छा नहीं है। जो व्यक्ति कुल मिलाकर यह प्रतीत होता है कि नहीं, सत्य के पक्षधर थे। कोई भी महापुरुष जैन होकर भी दहेज के लिए बहू को सताता लोकचेतना की जागृति में महावीर और कभी सम्प्रदाय का आग्रह कर ही नहीं सकता। है, जलाता है, क्या वह सच्चा जैन है? जो घी मुहम्मद के प्रयत्नों में बहुत समानता थी। महावीर, बुद्ध, ईसा, मुहम्मद आदि सभी में चर्बी की मिलावट करता है, क्या वह जैन महापुरुष धर्म के उपदेशक थे। उन्होंने शाश्वत हो सकता हैं? इस्लाम की पांच इबादतें धर्म का उपदेश दिया। शाश्वत धर्म द्रव्य, क्षेत्र, जैन धर्म में उपासना की अपनी पद्धति है। काल, वेश, लिंग, रंग आदि से प्रतिबद्ध नहीं महावीर और मुहम्मद इसी प्रकार इस्लाम धर्म में इबादत की परम्परा होता। वह देशातीत और कालातीत होता है। मुहम्मद साहब का जीवन श्रमप्रधान और है। जैनधर्म के अनुसार नमस्कार महामन्त्र का उसका बंटवारा नहीं होता। पर इन महापुरुषों सादगीप्रधान था। वे कच्चे मकान में रहते थे। जप, सामायिक, संवत्सरी का उपवास, के अनुयायियों ने धर्म को सीमित कर दिया। लकडी के बर्तन काम में लेते थे। वे अपने (पान क्र.६९ पहा.) भगवान महावीर जयंती स्मरणिका २००९ । ७

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