Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
२५. पंचेंद्रिय प्रयोग नीं पूछा, जिन नरक - पंचेंद्रि प्रयोग- परिणता, इम
कहै प्यार प्रकार । तिरि मणु सुर धार ॥
।
२१. नरक-पंचेंद्री प्रयोग नीं पूछा, जिन कहै तमु विध सात रत्नप्रभा नारक चेंद्री जाव
तमतमा ख्यात ॥
३०. तिरिखस-पंचेंद्री प्रयोग नीं पूछा, जिन कहे तीन प्रकार । जलचर-पंचेंद्री प्रयोग-परिणता, थलचर खेचर
धार ॥
३१. जलचर-पंद्री तिरि पूछा, जिन कहे तसुं विध दोय । संमूच्छिम - जलचर-पंचेंद्री, गर्भेज
जलचर
जोय ॥
३२. थलचर - तिरि-पंचेंद्री पूछा, द्विविध कहै जिनराय । चोपद थलचर परिसर्प थलचर, ए बिहुं भेद कहाय ॥
३३. चोपद थलचर फेरी पूछा, द्विविध कहूँ जिन स्वाम संमूच्छिम चोपद थलचर र गर्भज पलचर नाम ।।
1
३४. इस आलावे करिने कहिया उरपरिसर्प हिया सूपाल, सू चाल, ३५. उरपरिसर्प द्विविध जिन आख्या
द्विविध परिसर्प ह । भुज परिसर्प भुजेह ॥ संमूच्छिम गर्भज ।
।
एवं भुजपरिसर्प द्विविध है, द्विविध है, खेचर एम कहेज ॥
·
२६. मनुष्य-पंचेंद्री प्रयोग नीं पूछा, जिन कहे दोय प्रकार । मनुष्य-संमूच्छिम चउद स्थानकिया, गर्भज मनुष्य विचार ॥
॥
Jain Education International
२८. पंचिदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा ।
गोयमा ! चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा ने रइयचिदियोगपरिणवा, तिमि देवचिदिवयोगपरिणया ।
(०८६)
२६. नेरइयपंचिदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा |
गोयमा ! सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा रयणष्पभपुढ़वि-नेरइयपंचिदियपयोगपरिणया वि जाव आहेसतमपुविनेयनिदियोगपरिणयावि
(श० ८1७)
३०. तिरिक्खजोणिय पंचिदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा । गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- जलचरतिरिक्खजोणियपंच दियपयोगपरिणया, थलचरतिरिक्ख .....खहचर तिरिक्ख'''परिणया
३१. जलचरतिरिक्खजोणियपंचिदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा ।
गोवमा | दुबिहा पष्णता जहासंमुच्छिमजला ! तं चरतिरिक्तजीणिपर्वचिदियपयोगपरिणवा, रामवक् तियजलचरतिक्जिोगियचिदिपरिणा
( श० दाह) ३२. यसरतिरक्ष जोगियपंचिदिययोगपरिणयाणं पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - चउप्पयथलचरति रिक्खजोणिय पंचिदियपयोगपरिणया, परिसप्प - थलचरतिरिक्खजोणियपंचिदियपयोगपरिणया ।
( श० ८1१० ) २२. चढण्णपचलचरतिक्खि जोगियपंचिदिपयोगपरिण याणं पुच्छा ।
गोषमा ! दुबिहा पत्ता, तं वहा संमूमिउपपचलचरतिरिक्स विचिदिययोगपरिणया गब्भवक्कंतियच उप्पयथलचरतिरिक्खजोणिय पंचिदियपयोगपरिणया । (०८।११) ३४. एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- उरपरिसप्पा य भुयपरिसप्पा य । ३५. उपर दुबिहा पत्ता व जहासंमुमाव गव्वतिया व । एवं भुवपरिया वि एवं यह यरा वि । (२०१२) ३६. मोगपरिणयानं पुच्छा। गोवमा दुविहा पत्ता, तं जहा संमुच्छिममणुसपंचोपरा सम्भवनसंतियमणुस्सर्पचिदि पयोगपरिणया |
(४०८११२)
श०८, उ० १, ढा० १३० ३०५
For Private & Personal Use Only
1
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582