Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 545
________________ ६१. आयुकर्म अवलोय, पुण्य पाप कहियै बिहं। सावज निरवद सोय, प्रत्यक्ष करणी पेखलो॥ ६२. पुन्य आयु कर्म जेह, तन नाम कर्म नै उदय करि। जोग भला प्रवत्तेह, मोह रहित कारंज अछ । ६३. पाप आउखो पेख, तन नाम उदय जोग प्रवत्” । मोह सहित सुविशेख, ते माट अशुभ जोग छै'। (ज० स०) ६४. *शुभ नाम कर्म शरीर नीं पूछा, तब भाखै जिनराय। काया सरल ते काय करीन, अन्य भणी ठगै नांय ॥ ६५. भाव सरल ते अन्य ठगवा नों, मन प्रवर्ते नांहि । भाषा सरल ते वचन करीने, ठगै नहिं कोइ ताहि ॥ ६६. जेहवो करै तेहवो इज बोले, न करै विपरीत मंद । ते अविसंवादन जोग करीने, शुभ नाम कर्म जाव बन्ध ।। ६४. सुभनामकम्मासरीरपुच्छा (सं० पा०) गोयमा ! काउज्जुययाए कायर्जुकतया परावञ्चनपरकायचेष्टया __ (वृ० प० ४१२) ६५. भावुज्जुययाए, भासुज्जुययाए भावर्जुकतया परावञ्चनपरमनःप्रवृत्त्येत्यर्थः, भाषर्जु कतया भाषाऽऽर्जवेनेत्यर्थः (वृ० प०४१२) ६६. अविसंवादणाजोगेणं सुभनामकम्मा जाव (सं० पा०) पयोगबंधे। (श०८।४२६) विसंवादन-अन्यथाप्रतिपन्नस्यान्यथाकरणं तद्रूपोयोगो-व्यापारस्तेन वा योगःसम्बन्धी विसंवादनयोग स्तन्निषेधादविसंवादनयोगस्तेन (वृ० प० ४१२) ६७. इह च कायर्जुकतादित्रयं वर्तमानकालाश्रयं, अविसंवादनयोगस्त्वतीतवर्तमानलक्षणकालद्वयाश्रय इति (वृ० प० ४१२) ६८. असुभनामकम्मासरीरपुच्छा (सं० पा०) गोयमा ! कायअणुज्जुययाए ६६. भावअणुज्जुययाए, भासअणुज्जुययाए ६७. काय सरल भाव सरल भाषा सरल, वर्तमान काल आश्री धार। अविसंवाद जोग अतीत वर्तमान, बे काल आश्री विचार ॥ ६८. अशुभ नाम कर्म शरीर नीं पूछा, तब भाखै जिनराय । काया तणो पिण सरल नहीं ए, काया करी ठगै अन्य ताय । ६६. भाव तणो पिण सरल नहीं जे, ठगवा नों प्रवर्तं मन्न । भाषा तणो पिण सरल नहीं ए, वचन करि ठगै अन्न। *लय : राजा राघव वा०-इहां केयक तिथंच रो आउखो पुन्य री प्रकृति दीसे इम कह्य। ते तिर्यंच युगलिया नो पुन्य प्रकृति हुवं ते पिण केवली जाणे अनै युगलिया विना अनेरा तिथंच रो आउखो तो पाप री प्रकृति छै। च्यारे प्रकारे बांधे तिजंच रो आउषो, ते च्यारूइ बोल सावज नहिं रूड़ा । त्यां सूं तो पाप री प्रकृत बंध छ, त्यांरो आउषो पुन कहै ते कूड़ा ॥ तिजंच पुगलिया रो शुभ आउषो, ते तो पुन री प्रकृत दीसती जाणो । अन्य तिर्जच रो आउषो पाप री प्रकृत, ते सूतर सू बुद्धिवंत करसी पिछाणो॥ माठा माठा अधवसाय सूं बंधै आउषो, ते आउषो फाप री प्रकृत जाणो। शंका हुवै तो भगोती सूतर में जोवो, चोवीसमैं शतक गमां तूं पिछाणो । श०८, उ०६ ढा० १६३ ५२५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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