Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 565
________________ ३५. जिन कहै द्रव्य एक ते कदा तीन परमाणुआ ताय । त्रि प्रदेश संधपणें परिणम्या द्रव्य इक इण न्याय ॥ ( प्रथम भंगो इमल कथा ) ३६. द्रव्य नों देश इक छे कदा, त्रिप्रदेशिक खंध ताय । अन्य द्रव्य मांहे जाइ मिल्यो, ए द्वितीय भंग कहिवाय ॥ ३७. तीन प्रदेशियो बंध ते थया जुजुआ परमाणु तीन बहु द्रव्य तास कहिये कदा, भंग तीजो इम लीन ॥ ३८. अथवा जे तीन परमाणुआ, वे द्विप्रदेशिक संधपणे बाय एक परमाणुपण रह्यो, बहु द्रव्य पिण इम थाय ॥ ( अन्य प्रकार भंग तृतीय इम) ३६. तेहिज तीन परमाणुआ, अन्य द्रव्य मांहै मिल्या जाय । द्रव्य नां देश बहु इम, ए भंग चोथो कहिवाय ॥ ४०. अथवा बे द्विप्रदेशिक छता, एक केवल छतो ताय । ए बिहूं अन्य द्रव्य सू मियां, देश बहू इम चाय ॥ (भंग चोथो वलि इम हुवे ) ४१. तेहिज तीन परमाणुआ, परमाणुपणे रह्यो एक बे अन्य द्रव्य मांहे मिल्या इक देशपणें सुविशेख ॥। (द्रव्य इक देश इक पंचमो ) ४२. अथवा जे तीन परमाणुआ, द्विप्रदेशिक खंध देख । इक अन्य द्रव्य मांहे मिल्यो, द्रव्य इक देश इक पेख || (भंग पंचम पिण इम हुवे ) ४३. तेहिज तीन परमाणुआ, परमाणुवर्ण भेद करिबे अन्य द्रव्य मिल्यां, द्रव्य इक देश (भंग छठो इम कदा ) ४४. तेहिज तीन परमाणुआ, परमाणुपणे रह्या दोय । एक अन्य द्रव्य मांहे मिल्यां, द्रव्य बहु देश इक होय ॥ ( सप्तम भंग इहविध हुवै ) ४५. अष्टम भंग न संभवे तोन प्रदेश तिण न्याय द्रव्य ने द्रव्य नांदेश ते बहु वचने नहि थाय ॥ ४६. पुद्गलास्तिकाय नां हे प्रभु! प्यार प्रदेश विशेष स्यूं द्रव्य के द्रव्य-देश इक, तिमज अठ भंग पूछेस ॥ रह्यो एक बहु देख ॥ १. गाथा ३६ में सिय दव्वदेसे' के अनुसार दूसरा भंग बतलाया गया है । उसके बाद भगवती में - एवं सत्तभंगा भाणियव्वा जाव सिय दव्वाइं च दव्वदेसे य, नो दव्वाई च दव्वदेसाय ( ८।४७२ ) इस प्रकार संक्षिप्त पाठ देकर सातों भंगों की सूचना दी गई है। भगवती की जड़ (३७ से ४४ ) में प्रत्येक भंग को स्वतन्त्र रूप में निरूपित किया गया है। इसलिए जोड़ के समानान्तर उक्त पाठ को न रखकर वृत्ति को उल्लिखित किया गया है । Jain Education International ३५. गोयमा ! सियदव्वं, यदा त्रयोsपि त्रिदेशिकस्कन्धतया परिणतास्तदा द्रव्यं (० ० ४२१) २६. सिदबदेसे यदा तु त्रिप्रदेशिक स्कन्धता परिणता एव द्रव्यान्तरसम्बन्धमुपगतास्तदा द्रव्यदेश: ( वृ० प० ४२१) ३७. यदा पुनस्ते त्रयोऽपि भेदेन व्यवस्थिता, (० ० ४२१) ३८. द्वौ वा यणुकीभूतावेकस्तु केवल एवं स्थितस्तदा 'दव्वाई' ति ( वृ० प० ४२१) ३६. यदा तु ते त्रयोऽपि स्कन्धतामनागता एव, ४०. द्वौ वा यणुकीभूतावेकस्तु केवल एवेत्येवं द्रव्यान्तरेण संबद्धास्तदा 'दव्वदेसा' इति । ( वृ० प० ४२१) ४१. अथक: केवल एव स्थितो द्वौ तु द्व्यणुकतया परिणम्य द्रव्यान्तरेण संबद्धौ तदा 'दव्वं च दव्वदेसे य' त्ति ( वृ० प० ४२१) ४२. यदा तु तेषां द्वौ द्व्यणुकतया परिणतावेकश्च द्रव्यान्तरेण संबद्ध: ( वृ० प० ४२१) ४३. यदा तु तेषामेकः केवल एव स्थितो द्वौ च भेदेन द्रव्यान्तरेण संबद्धौ तदा 'दव्वं च दव्वदेसा य' त्ति (०१० ४२१) ४४. यदा पुनस्तेषां द्वौ भेदेन स्थितावेकरच द्रव्यान्तरेण संबद्धस्तदा 'दव्वाई च दव्वदेसे य' त्ति, ( वृ० प० ४२१) ४५. अष्टमविकल्पस्तु न संभवति उभयत्र त्रिषु प्रदेशेषु बहुवचनाभावात्, ( वृ० प० ४२१ ) ४६. चत्तारि भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसा कि दव्वं ? पुच्छा । For Private & Personal Use Only , श०८, उ० १०, ढा० १६७ ५४५ www.jainelibrary.org

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