Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 563
________________ २. पुद्गल राशि नों ताय, परमाणु संध घी मिल्यो । ।। नहि मिल्यो । जाणवो ॥ तसु प्रदेश कहिवाय, जदो नहीं तिण कारणें ॥ १०. पुद्गल राशि नों जाग, खंध थकी जे ते परमाणु पिछाण ए प्रदेश तुल्य ११. जे परमाणू होय, प्रदेस करिकै ते मार्ट ए जोय, प्रदेश करि १२. भूत भविष्यत काल, ते नय वचन करी इहां । परमाणू पिण म्हाल, प्रदेश संज्ञा कर कहा ॥ १३. वर्तमान जे काल, तेह तणीज अपेक्षया । परमाणू में म्हाल, अप्रदेश बहु ठामें तुल्य है । बोलावियो ॥ कहा ॥' (ज० स० ) १४. * पुद्गलास्तिकाय नों हे प्रभु! एक प्रदेश छै ताय । एक द्रव्य तास कहियै अछे ? ए धुर भंग कहिवाय ॥ १५. गुण सोरठा पर्याय सहीत, द्रव्य कहीजै कहीजं तेहने । आश्रयभूत प्रतीत, द्रव्य गण पर्याय न ॥ वा० यद्यपि परमार्थ थकी गुण पर्याय नि एकपणों हीज हुवै, परन्तु सहभावी तो गुण अनं क्रमभावी पर्याय इण लक्षणे करि नैं भेद हुवे । आगम में कह्यो छै गुणाणमासम दयं एगव्यस्तिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ॥ गुण नों आश्रय द्रव्य अनें एक केवल द्रव्य नै विषे रहे ते गुण अनै पर्याय नों लक्षण ते द्रव्य, गुण वि ने विषे रहे। अत्र टीका-उभयाथितं द्रव्यगुणाश्रित मित्यर्थः । एतले द्रव्य गुण नैं आश्रित पर्याय छै । १६. के द्रव्य नौ इक देश छ ? द्रव्य नों अवयव जेह इक वच भंग ए बेह ॥ वे, तसु बहु द्रव्य कहिवाय । के द्रव्य नां देश कहियै घणां, ए बहु वच भंग बे थाय ॥ १८. ए त्रिहुं भंग एक संजोगिया, हिवै दोय देश कहीजे छे तेहने १७. तिम बहु वचन नां भंग संजोगिया च्यार । एक वचन बहुवचन यी कहिये से अधिक उदार ॥ १६. अथवा द्रव्य एक नें द्रव्य नों, एकज देश कहिवाय । Jain Education International ए विकल्प को पंचमो, हिवं छठा तनों सुणो न्याय ॥ २०. अथवा द्रव्य एक ने द्रव्य नां, देश घणां कहिवाय । छट्टो ए विकल्प आखियो, सातमां नों हिवै न्याय ।। २१. अथवा बहु द्रव्य ने द्रव्य नों, एकज देश कहिवाय । विकल्प ए को सातमों, आठमां नो हि स्वाय ॥ *लय मम करो काया माया कारमी १४. एगे भंते ! पोग्गलत्थिकायपदेसे कि दव्वं ? १५. द्रव्यं गुणपर्याययोगि, १६,१७. दव्वदेसे ? दव्वाई ? दव्वदेसा ? द्रव्यदेशो द्रव्यावयवः एवमेकत्वत्वाच्या प्रत्येकविकल्पाश्चत्वारः ( वृ० प० ४२१) १८. द्विक्संयोगा अपि चत्वार एव ? ( वृ० प० ४२१ ) १६. उदाहु दव्वं च दव्वदेसे य ? २०. उदाहु दव्वं च दव्वदेसा य ? २१. उदाहु दव्वाई च दव्वदेसे य ? For Private & Personal Use Only ( वृ० प० ४२१ ) - ० ५ ३० १० वा० १६७ ५४३ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582