Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 547
________________ सोरठा ८३. 'अन्तराय बन्ध धार, दानादिक अन्तराय दै। ए करणी आज्ञा बार, अन्तराय कर्म पाप इम' । (ज० स०) ८४. * अंक नव्यासी ने देश कह्य ए, एकसौ – तेसठमीं ढाल । भिक्ष भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश' हरष विशाल । ढाल: १६४ दहा १. नाणावरणिज्जकम्मास रीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कि देसबंधे ? सव्वबंधे? २. गोयमा ! देसबंधे, नो सव्वबंधे ! एवं जाव अंतराइयं । (श० ८।४३४) १. ज्ञानावरणी कार्मण-शरीर-प्रयोग-बंध । देश-बंध स्यू छै प्रभ ! कै सर्व-बंध कथियंद ? २. जिन भाखै देशबंध ह, सर्वबंध नहिं होय । एवं यावत अंतराय-कर्म कहीजै सोय ।। ३. कार्मण अनादिपणां थकी, सर्व-बंध नहिं होय । सर्व-बंध नैं प्रथम समय, पुद्गल ग्रहण सुजोय ॥ स्वाम ! थारा ज्ञान तणी बलिहारी, ए तो भिन-भिन भेद उचारी। नाथ ! थांरी करणी री बलिहारी, शुद्ध न्याय छाण्या तंतसारी॥ स्वाम ! थारो ज्ञान अपरंपर भारी ॥(ध्र पदं) ४. हे प्रभुजी ! ज्ञानावरणी कार्मण-शरीर-प्रयोग-बंध । काल थकी केतलो काल होवै ?जिन कहै द्विविध संध।। ४. नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा५. अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्ज वसिए। ६. एवं जाव अंतराइयस्स । (श० ८।४३५) ५. आदि-रहित अरु अंत-रहित, ए तो कर्म अभव्य नां धारी। ___ आदि-रहित अरु अंत-सहित, भवसिद्धिया कर्म नै जारी॥ ६. इम जिम तेजस शरीर तणो, संचिटणा काल उचारी। तिमहिज ज्ञानावरणी कर्म क हिवो, जाव अंतराय धारी। ७. प्रभुजी ! ज्ञानावरणी कार्मण, तनु प्रयोग बंध धारी। अंतर काल थी होवै केतलो? जिन कहै दोय प्रकारी॥ ८. आदि-रहित अंत-रहित अभव्य कर्म, अंतर नथी विचारी। आदि-रहित अंत-सहित भव्य कर्म, अंतर नहीं लिगारी॥ . *लग : राजा राघव लिय : गावत मेरी ७. नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधंतरं णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? ८. गोयमा! अणादीयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, अणादीयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं । श०८, उ०६, ढा० १६३,१६४ ५२७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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