Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सोरठा २१. 'ए षट कारण धार, ज्ञानावरणी बंध नां।
सावज आज्ञा बार, तिण कारण ए पाप कर्म । २२. शरीर नाम कर्म ताहि, तास उदय जोग प्रवः । मोह उदय ए मांहि, अशुभ जोग तिण कारण ।।'
(ज० स०) २३. *दर्शणावरणी कर्म शरीर-प्रयोग-बंध, किण कर्म उदय करि
थूल ? जिन कहै दर्शण दर्शणवंत थी, सामान्यपणे प्रतिकूल ॥ २४. इम जिम ज्ञानावरणी कह्यो, तिम दर्शणावरणी अहिवं ।
णवरं इतो विशेष जाणवो, दर्शण नामज कहिव। २५. जाव दर्शण नों विसंवाद जोग करि, दर्शण नो व्यभिचार ।
देखाड़वा नै अर्थे प्रजू भै, मन वचन काया नां व्यापार ॥ २६. ए छ प्रकार करि दर्शणावरणी कर्म, शरीर-प्रयोग-बंध सोय।
नाम कर्म नैं उदय करिने, दर्शणावरणी प्रयोग-बंध होय ॥
२३. दरिसणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते !
कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा ! दसणपडिणीययाए । २४. एवं जहा नाणावरणिज्जं, नवरं दसणनाम घेतव्वं
२५. जाव (सं० पा०) दंसणविसंवादणाजोगेणं
२६. सणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगनामाए . कम्मस्स उदएणं दरिसणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे ।'
(श० ८।४२१) २७. इह दर्शनं-चक्षुर्दर्शनादि। (व०प० ४११)
सोरठा २७. इहां दर्शण पहिछाण, चक्षु-दर्शण आदि नों।
प्रत्यनीकादि जाण, वृत्ति मझे ए वारता॥
वा०-चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवलदर्शण नों प्रत्यनीक । तीन दर्शण तो क्षयोपशम भाव अनै केवलदर्शण खायिक भाव । तेहनी अवज्ञा करै-ए देखवा में स्यूं छै ? ते सिद्धां में केवलदर्शण टुगटुगापुरी छै । तथा केवल-दर्शणवंत नी प्रत्यनीकादिकपणों कर तथा चक्ष दर्शन थी जिन तथा साधां रा दर्शण करै तेहनों प्रत्यनीकादिकपणों अवज्ञा करै, हेलणा कर, तेहथी दर्शणावरणी कर्म बन्छ । २८. 'ए षट कारण धार, दर्शणावरणी बन्ध नां।
सावज आज्ञा बार, तिण कारण ए पाप कर्म । २६. शरीर नाम कर्म ताहि, तास उदय जोग प्रवर्त। मोह उदय ए मांहि, अशुभ जोग तिण कारणै' ।
(ज० स०) ३०. *सातावेदनी कर्म शरीर प्रयोग-बंध, प्रभ ! किस कर्म उदयेण?
जिन कहै प्राण नी अनुकंपा करि, भत नी अनुकंपा करेण ।।
३०. सायावेयणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स
कम्मस्स उदएणं?
गोयमा ! पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयाए। ३१. एवं जहा सत्तमसए दुस्समउद्देसए
३१. जिम सप्तम शत' दुःषम उदेशे, छठे उदेशे ताहि ।
तिहां साता असाता वेदनी नों, वर्णन छै तिण मांहि ॥
*लय : राजा राघव १. भ. श०७।११४
४०८, उ०६, ढा० १६३ ५२१
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