Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
१०. ज्ञान तणो तथा ज्ञानवंत नीं, करै आशातना मति-हीन ।
हेल निंदै खिसै करै अवज्ञा, पाप कर्म में लीन ।। हेले निखि शातना मति-हीन ।
११. ज्ञान ज्ञानी नों विसंवाद जोग कर, ज्ञान तणो व्यभिचार ।
देखाड़वा नै अर्थे प्रजंझ, मन वचन काया नां व्यापार ॥
१०. नाणच्चासातणयाए, ज्ञानस्य ज्ञानिनां वा याऽत्याशातना-हीलना
(वृ० प० ४११) ११. नाणविसंवादणाजोगेणं
ज्ञानस्य ज्ञानिनां वा विसंवादनयोगो—व्यभिचारदर्शनाय व्यापारो यः स तथा तेन । (वृ० प० ४११)
१२. सूत्र में किहांइक दया कही छै, किहां हिंसा कही सूत्र माय ।
इत्यादिक विसंवाद बतायां, ज्ञानावरणी कर्म बंधाय ।
सोरठा १३. 'नदी प्रमख नी आण, कामी नहिं हणवा तणो।
तिण कारण पहिछाण, तसु हिंसा कहियै नहीं। १४. *कृष्ण बारमों जिन अंतगड में, तेरमो समवायंग मझार । समझ पड़यां विण वोर वचन में, कहै विसंवाद व्यभिचार ।।
सोरठा १५. अनागत चोवीस, पूरव भव नां नाम में ।
कृष्ण नाम सुजगीस, समवायंगे तेरमो ॥ १६. आगल बार नाम, इम पच्चीस तिहां नाम छै ।
इक द्रव्य जिन नां ताम, दोय नाम छै ते भणी॥ १७. आनंद सुनंद ताम, कृष्ण नाम पहिला अछ।
एक तणां बे नाम, एह बड़ां नी धारणा ॥
१५-१७. सेणिय' सुपास' उदए' पोट्ठिल' अणगारे तह
दढाऊ' य । कत्तिय संखे' य तहा नंद' सुनंदे सतएय
बोद्धव्वा ॥१॥ देवई" चेव सच्चई २, तह वासुदेव बलदेवे"। रोहिणी" सुलसा चेव, तत्तो खलु रेवई चेव ॥२॥ तत्तो हवइ मिगाली," बोद्धव्वे खलु तहा भयाली" ।
दीवायणे य कण्हे, तत्तो खलु नारए चेव ॥३॥ अंबडे दारुमडे" य, साई५ बुद्धे य होइ बोद्धव्वे । उस्सप्पिणी आगमेस्साए, तित्थगराणं तु पुव्वभवा* ॥४॥
(समवाओ, प० स० २५२) १८. कण्हाइ! अरहा अरिटुणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-""अममे नाम अरहा भविस्ससि ।
(अंतगडदसाओ ॥१८)
१८. अंतगड रै मांहि, अरिष्टनेम जिन इम कह्यो।
कृष्ण होसी तूं ताहि, अमम नाम जिन बारमों। १६. ते माट इम जाण, अमम नाम रै स्थानके ।
कृष्ण नाम पहिछाण, इण न्याये जिन बारमों' ।। (ज० स०) २०. *ए छ प्रकार करि ज्ञानावरणी कर्म, शरीर-प्रयोग-बंध सोय।
नाम कर्म नै उदय करीने, ज्ञानावरणो प्रयोग-बंध होय ॥
२०. नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे।
(श० ८।४२०) उक्त नामों में 'वासुदेवे' कृष्ण का नाम है । उसकी संख्या तेरहवीं है । उससे पहले नन्द और सुनन्द-ये दो नाम एक ही तीर्थंकर के हैं। इस दृष्टि से कृष्ण का नाम बारहवां ही प्रमाणित होता है।
* लय : राजा राघव
५२० भगवती-जोड़
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582