Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२५. से कि तं समुच्चयबंधे ?
समुच्चयबंधे-जण्णं अगड-तडाग२६. नदी-दह-वावी-पुक्खरिणी-दीहियाणं, गुंजालियाणं,
सराणं, सरपंतियाणं २७. सरसरपंतियाणं, बिलपंतियाणं देवकुल-सभ-प्पव
२८. थूभ-खाइयाणं, फरिहाणं, पागारट्टालग-चरिय-दार
२६. गोपुर-तोरणाणं, पासाय-घर-सरण-लेण-आवणाणं,
२५. बंध समच्चय स्यू कह्यो ? जिन भाखै तसु भाव ।
अगड सरोवर अणखण्यो, पाल सहित ते तलाव ॥ २६. नदी द्रह नै बावडी, पुक्खरणी कमलंत ।
दीपिका ने गंजालिका, सर वलि सर नीं पंत ॥ २७. पंक्ति वलि सर-सर तणी, वलि बिल-पंक्ती जाण ।
देवकुल देहरो नैं सभा, वलि पो-देवा नो स्थान ॥ २८. थूभ खाई परिहा वलि, गढ कोट ते प्राकार।
अट्टालग कहि बरज नैं, चरिय अने वलि द्वार । २६. गोपुर में तोरण वलि, प्रासाद घर सामान ।
शरण लेण पिण घर अछ, हाट-श्रेणि पहिछाण ॥ ३०. संघाडा ने आकारै बलि, त्रिक चोक पंथ एह ।
चच्चर बहु पंथ बहु गली, चोमुख स्थानक जेह ।। ३१. महापंथ ए आदि दे, छुहा ते चूनो पिछाण ।
तिण करिने ए बंधिय, वलि कर्दम करि जाण ।। ३२. सिलेस ते वज्र लेप थी, विशेष ऊंच करेह ।
बंध ऊपजै बंध जुड़े, समुच्चय-बंध कहेह ॥ ३३. जघन्य अंतर्मुहुर्त रहै, उत्कृष्ट काल संख्यात ।
समुच्चय-बंध कह्यो तसु, जगतारक जगनाथ ॥ ३४. स्य' साहणणा बंध छै? जिन कहै द्विविध संध ।
देश-साहणणा बंध कह्यो, सर्व-साहणणा बंध ।।
३०. सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह
३१. महापह-पहमादीणं, छुहा-चिक्खल्ल
३२. सिला-समुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ
३३. जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सखेज्ज काल । सेत्तं ससुच्चयबंधे।
(श० ८।३५६) ३४. से कि तं साहणणाबंधे ?
साहणणाबंधे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–देससाहणणाबंधे य, सव्वसाहणणाबंधे य। (श० ८।३६०)
दहा
ते
३५. देश करीने देश नों, संहनन बंध संबंध ।
देश-साहणणा बंध ते, शकट अंगादिक संध ।। ३६. सर्व करीने सर्व नों, संहनन बंध संबंध ।
सर्व-साहणणा बंध ते, क्षीर नीर जिम संध । ३७. *देश-साहणणा बंध स्यू? जिन कहै जेह पिछाण ।
शकट गाडी ने रथ वलि, लघु गाडी ते जाण ॥
३५. देशेन देशस्य संहननलक्षणो बन्धः-सम्बन्धः शक
टाङ्गादीनामिवेति देशसंहननबन्धः। ३६. सर्वेण सर्वस्य संहननलक्षणो बन्धः-सम्बन्धः क्षीर
नीरादीनामिवेति सर्वसंहननबन्धः । (वृ०प० ३६६) ३७. से किं तं देससाहणणाबंधे ? -
देससाहणणाबंधे-जण्णं सगड-रह-जाण'सगड' त्ति गन्त्री 'रह' त्ति स्यन्दनः 'जाण' त्ति यानंलघुगन्त्री।
(वृ० प० ३६६) ३८, जुग्ग
'जुग्ग' ति युग्यं गोल्लविषयप्रसिद्ध द्विहस्तप्रमाणं
वेदिकोपशोभितं जम्पानं । (वृ० प० ३६६) ३६. गिल्लि-थिल्लि
'गिल्लि' त्ति हस्तिन उपरि कोल्लरं यन्मानुषं गिलतीव 'थिल्लि' त्ति अड्डपल्लाणं। (वृ० प० ३६६)
३८. जुग्ग प्रसिद्ध गोल देश में, ते दोय हस्त प्रमाण ।
उपशोभित वेदिका करि, एह विशेष जंपान ।।
३६. गिल्लि अंबाडी गज तणी, थिल्लि तुरंग पिलाण ।
अथवा अंबाड़ी ऊंट नीं, ते पिण थिल्लि पिछाण ॥
*लय : धिन भगवंत रो जी ज्ञान
थ.
उ.
दा.१५६ ४७९
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