Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 524
________________ सोरठा ६. वैक्रिय तन सुविचार, देश-बंध धर समय किम ? औदारिक तन धार, वैक्रिय पडिवजतो छतो॥ १०. प्रथम समय सर्व बंध, देश बंध द्वितीय समय । पाम्यो मरणज मंद, जघन्य थकी इक समय इम ।। ११. उत्कृष्टो अवलोय, तेतीस सागरोपम रहै । समय ऊण ते होय, ते किण रीत कहीजिये ? १२. नरक तथा सुर मांय, उत्कृष्टी स्थिति में विषे । ऊपजतो कहिवाय, समय ऊण तेतीस उदधि ।। ६. 'देसबंधे जहण्णणं एक्कं समयं' ति, कथं ? औदारिक शरीरी वैक्रियतां प्रतिपद्यमानः (वृ० प० ४०६) १०. प्रथमसमये सर्वबन्धको भवति द्वितीयसमये देशबन्धो भूत्वा मृत इत्येवं देशबन्धो जघन्यत एक समयमिति । (वृ० प० ४०६) ११. 'उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयऊणाई' ति, कथम ? (वृ० प० ४०६) १२. देवेषु नारकेषु चोत्कृष्टस्थितिषूत्पद्यमान: प्रथमसमये सर्वबन्धको वैक्रियशरीरस्य ततः परं देशबन्धकस्तेन सर्वबन्धकसमयेनोनानि त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाण्युत्कर्षतो देशबन्ध इति (वृ० प० ४०६) १३. वाउक्काइयएगिदियवेउब्वियपुच्छा । गोयमा ! सव्वबंधे एक्कं समयं, १४,१५. वायुरौदारिकशरीरी सन वैक्रियं गतस्तत: प्रथम समये सर्वबन्धकः द्वितीयसमये देशबन्धको भूत्वा मृतः इत्येवं जघन्येनैको देशबन्धसमयः। (वृ० प० ४०६) १३. *वाऊकाय एकेंद्री पूछा, तब भाखै जिनराय । सर्व-बंध स्थिति एक समय नीं, हिव तसु कहियै न्याय ।। सोरठा १४. वाऊ तन औदार, तेह थकी वैक्रिय गयो । प्रथम समग सुविचार, सर्वबंधकारक थयो । १५. दूजे समये संध, देश-बंध थइ नै मओ । जघन्य थकी सर्व-बंध, एक समय वैक्रिय पवन ॥ १६. *वाऊ वैक्रिय देश-बंध ते, जघन्य समय इक लहिये । उत्कृष्टो अंतर्मुहुर्त ते, न्याय तास इम कहियै ।। सोरठा १७. वाऊ तन औदार, तेह थकी वैक्रिय गयो । अंतर्महुर्त धार, उत्कृष्टो रहै जीवतो॥ १८. लब्धी वैक्रिय वाय, अंतर्मुहुर्त थी अधिक । वैक्रिय नहिं रहिवाय, अवश्य औदारिक फुन हुई ।। १६. देसबंधे जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । (श० ८।३६४) १७. वैक्रियशरीरेण स एव यदाऽन्तर्मुहूर्त्तमात्रमास्ते तदोत्कर्षतो देशबन्धोऽन्तर्मुहुर्तम् (वृ० ५० ४०६) १८. लब्धिवैक्रियशरीरिणो जीवतोऽन्तर्मुहुर्तात्परतो न वैक्रियशरीरावस्थानमस्ति, पुनरौदारिकशरीरस्या वश्यं प्रतिपत्तेरिति। (वृ०५० ४०६) १६. रयणप्पभापुढविनेरइयपुच्छा । गोयमा ! सव्वबंधे एक्कं समयं, २०. देसबंधे जहण्णेणं दसवाससहस्साई तिसमयूणाई १६. *रत्नप्रभा नारक नीं पूछा, तब भाखै जगभाण । सर्व-बंध कारक स्थिति तेहनी, एक समय पहिछाण ॥ २०. देश-बंधकारक ते जघन्य थी, दस सहस्र वर्ष विचार । तीन समय ऊणाज कहीय, तास न्याय इम धार॥ सोरठा २१. तीन समय नी जाण, विग्रह-गति करि ऊपनों । रत्नप्रभा में आण, जेह जघन्य स्थिति में विषे॥ *लय : चौरासी में ममता रे ममता २१. त्रिसमयविग्रहेण रत्नप्रभायां जघन्यस्थिति रकः समुत्पन्न:, (वृ० प० ४०६) ५०४ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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