Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 523
________________ २०. एवं व्यंतर अनें जोतिषी, द्वादश कल्पज एवं । कल्पातीत नव-ग्रीवेयक, बली अनुत्तर देव ॥ २१. देश नव्यासी डाल एकसो गुणसठमी ए ताजी । भिक्खु भारीमाल ऋषिराम प्रसादे 'जय जय' संपति जाझी ॥ हा १. वेत्रिय शरीर पूछे गोयम २. हे प्रभुजी ! देश -बंध वा सर्व-बंध ह्न ? जिन कहै दोनूं जोय ॥ नीं हिवे, देशबंध गणहरू, उत्तर दे वैक्रिय-तनु- प्रयोग-बंध अवलोय । ढाल : १६० * जिन-वच थी थी ए ३. वाऊकाय एकेंद्रिय, कहिये एवं चेव । रत्नप्रभा नारक इमज, जाव अनुत्तर देव ॥ लीजै रे, सतगुरु सीखड़ली । मोठी नाह सेरे, साकर सूखड़ली ॥ (प्र. पदं) ४. वैकिय-शरीर प्रयोग-बंध प्रभु ! काल थकी कितो काल ? जिन भाखै सर्व-बंध जघन्य थी, एक समय लग न्हाल ॥ सोरठा सर्व-बंध | जिनचंद ॥ ५. वैक्रिय शरीर मांहि, ऊपजतो धुर तथा लब्धि थी ताहि वैषिय करतो घर ६. * उत्कृष्टा बे समया कहिये, औदारिक तनु वैकिय पड़िवजतां धुर समये, सर्व-बंध ७. द्वितीय समय मरि देव प्रथम समय सर्व-बंध Jain Education International *लय चौरासी में भमतां रे भ्रमतां : समय जे । समय ।। । , नरक वैक्रिय तनु बांधत कहीजै, इम बे समया हुंत ॥! न्हालो । भालो ॥ ८. वैक्रिय तनु नों देश बंध ए जघन्य समय इक जाणी । उत्कृष्टो तेतीस सागर है, समय ऊण पहिचाणी ॥ २०. एवं वाणमंतरा एवं जोइसिया एवं मोहम्मरुप्पो क्या माजिया एवं जान अन्यगेवेज्जकरणातीया वेगाणिवा अनुत्तरोववाइयरूपातया वैमानिया एवं चेव । ( श० ८ ३९१ ) २. वेडव्वियसरी रपयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे ? सव्वबंधे ? गोयमा ! देसबंधे वि सव्वबंधे वि । ३. वाउक्काइयएगिदियवे उब्वियसरी रप्पयोगबंधे वि एवं चेव । रयणप्पभापुढविनेरइया एवं चेव । एवं जाव अणुत्तरोववाइया । (०२२) ४. वे उव्वियसरी रप्पयोगबंधे केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! समयं णं भंते ! कालओ सव्वबंधे जहणणं एक्कं ५. वैक्रियशरीरिषूत्पद्यमानो लब्धितो वा तत् कुर्वन् समयमेकं सर्वबन्धको भवतीत्येवमेकं समयं सर्वबन्ध इति । ( वृ० प० ४०६ ) ६,७. उक्कोसेणं दो समया । औदारिकशरीरी वैक्रियतां प्रतिपद्यमान: सर्वबन्धको भूत्वा मृतः पुनर्नारकत्वं देवत्वं वा यदा प्राप्नोति तदा प्रथमसमये वैक्रियस्य सर्वबन्धक एवेतिकृत्वा वैक्रियशरीरस्य सर्वबन्धक उत्कृष्टतः समयद्वयमिति । (०१० ४०६ ) ८. बंधे होणं एवकं समयं उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोदमाई समाद (० ०३२३) For Private & Personal Use Only श० ८, उ० ६, ढा० १६० ५०३ www.jainelibrary.org

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