Book Title: Bhagavati Jod 02
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२०. श्री जिन भासं गोषमा ! सदा काल रहाव । इस अधर्मास्तिकाय है, इम आगासत्विकाय ॥
"
२१. आदि सहित प्रभु! बीससा, बंध केवल भेद ? जिन कहै त्रिविध परूपिया, सुणजो आण उमेद ॥ २२. बंधन- प्रत्यय घर को भाजन-प्रत्यय बीजो। परिणाम प्रत्ययं तीसरो, तसु अर्थ सुणीजो ||
२३. बांधिये जे एणे
वांछित स्निग्ध आदि २४. भाजन आधारभूत जे, जेहनें विषे असे तसु २५. परिणाम ते अन्य रूप में, तेहिज प्रत्यय हेतु ज्यां,
दूहा
तेह ॥
हेतु ।
करी, बंधन तेह कहेह । गुण, प्रत्यय हेतु तेहिज प्रत्यय भाजन प्रत्यय गमन जायवो परिणाम प्रत्यय
वेतु ॥ जाण । माण |
२६. *बंधन प्रत्ययस्यूं प्रभु! तब भाखे जिनचंद । जे परमाणु-पोग्गला, दुप्रदेशिया बंध | २७. तीन प्रदेशिया जाव ते दश प्रदेशिया देख | संख असंख प्रदेशिया, अनंत प्रदेशिया पेख ॥ २८. विषम भाषा जेहने विषे ते बेमात्रा कहीजं । तेहिज से चींगटापणं, बेमायणिद्ध लीजे ॥
,
२६. विषम मात्रा जेहनें विषे, ते बेमात्रा कहीजै । तेहिन से लूखापणुं, बेमाय लुक्ल लीजे ॥ ३०. विषम मात्रा जेहने विषे, ते बेमात्रा प्रत्यक्ख ।
तेहिज निद्ध लुक्लापणु बेमायणिद्धलुक्ख ॥ ३१. सम गुण निद्ध बंधे नहीं, सम गुण निद्ध साथ । सम गुण लुक्ख बंधे नहीं, सम गुण लुक्ख संघात ॥ ३२. विषम मात्रा निद्ध ते, निद्ध साथ बंधात । विषम मात्रा लुक्ख ते बंधे लुक्ख विषमात ॥ ३३. बे गुण निद्ध जे चींगटो, अन्य बे गुण निद्ध । ते साचे बंध दुवै नहीं, सम गुण मार्ट प्रसिद्ध ॥
३४. ये गुण लुक्लो जेह छै, बली अनेरो जेह । बे गुण लुक्खो तेह थी, ए पिण नहिं बंधेह ॥ ३५. इणविध बंध वे नहीं, तो हिव किणविध होय ? चित्त लगाई सांभलो, वारू जिन वच जोय ॥
*लय : वीरमती कहै चंद ने
४७२ भगवती जोड़
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२०. गोयमा ! सव्वर्द्ध एवं अधम्मत्थिकाय अण्णमण्णअणादीयवीससाबन्धे वि एवं आगासत्थिकायअण्णमण्णअणादीयवीस साबन्धे वि । ( ० ८१४९) २१. सासवणं भंते! कतिविहे गोवमा ! तिथिटे पण तं जहा
?
२२. बन्धणपच्चइए, भायणपच्चइए, परिणामपच्चइए । (०८३५०)
२३.
बन्धनं विवक्षितस्निन्तादिको गुणः
स एव प्रत्ययो हेतुर्यत्र सः । ( वृ० प० ३९५ ) २४, २५. एवं भाजनप्रत्ययः परिणामप्रत्ययश्च, नवरं भाजनं आधारः परिणामो—रूपान्तरगमनं । (२००३२५)
२६. से किं तं बन्धणपच्चइए ?
बन्धणपच्चइए – जण्णं परमाणुपोग्गल दुप्पदेसिय
-
२७. तिप्पदेसिय जाव दसपदेसिय संखेज्जपदेसिय असंखेज्जपदेसिय अणतपदेसियाणं खंधाणं
२८. वेमायनिद्धयाए
विषमा मात्रा यस्यां सा विमात्रा सा चासौ स्निग्धता चेति विमात्रस्निग्धता । ( वृ० प० ३६५)
२६.
२०. मानिनुक्याए
३१,३२. समनिपाए बम्बो न हो इसखाए विन हो। मायनिद्धलुक्खत्तणेण बन्धो
उ खंधाणं || (बृ० प० ३१५)
३३. समगुणस्निग्धस्य समगुणस्निग्धेन परमाणुद्व्यणुकादिना बन्धो न भवति । (५०० ३९५) ( वृ० प० ३६५ )
३४. समगुणरूक्षस्यापि समगुणरूक्षेण
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